शमीम शर्मा
अंग्रेज लोग गलत-सलत हिन्दी बोलकर हमारे मुल्क में दो सौ साल राज कर गये। किसी ने उनके भाषा ज्ञान पर सवालिया निशान नहीं लगाया। आज भी अंग्रेजी भाषी लोग सहजता मिश्रित अहंकार से कहते हैं कि माफ करना मुझे हिन्दी जरा कम आती है और फिर बेतकल्लुफी से त्रुटिपूर्ण हिन्दी बोलते हैं तो कोई भी हिंदी विद्वान उन पर कभी फब्तियां नहीं कसता। अपने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अंग्रेजी ज्ञान पर बवाल मचा हुआ है। उन्होंने ट्विटर पर एक बार लिख दिया था- नेशन ऑफ फादर। उनके इस वाक्यांश पर ट्विटर मांडविया के प्रति कटाक्षभरी टिप्पणियों से लद गया है। या यूं कहूं कि लहूलुहान हो गया है।
अंग्रेजी की जड़ें हमारे भीतर अंतिम छोर तक गड़ चुकी हैं। हमारी आत्मा में यह सत्य पूरी तरह रम चुका है कि अंग्रेजी जानने-बोलने वाले ही कुलीन लोग हैं। अब कोई माई का लाल हमें अंग्रेजी-मुक्त नहीं कर सकता क्योंकि इंगलिश का वर्चस्व हमारे रक्तकणों में घुल चुका है। यह घोल ठेठ ग्रामीण अंचलों तक भी पैठ कर चुका है। अब लोकभाषा बोलने वालों की भी कोशिश रहती है कि अंग्रेजी अल्फाज घोल दिये जायें तो बात प्रभावी हो जाती है।
एक गांव की लड़की कॉलेज गयी तो रास्ते में बरसात होने के कारण वह पूरी तरह भीग गयी। कॉलेज पहुंचकर अपनी सहेली से बोली- ओ माय गॉड! मैं तो आली हो गई। कॉलेज होस्टल में यह आम है जब कोई लड़का कहता है- एक्सक्यूज मी यार, नून पास करियो। हिन्दी में अगर पत्नी को हत्यारिन कहो तो बहुत बुरा लगता है पर अंग्रेजी में ‘किलर’ कहने में कोई दिक्कत नहीं। अगर किसी हरियाणवी से पूछें कि मैं तेरी जान निकालता हूं, वाक्य का अंग्रेजी में फ्यूचर टैंस क्या होगा तो जवाब मिलेगा- टैंस छोड़, तू एक बर हाथ लगा कै दिखा।
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एक बर की बात है अक हिन्दी की मास्टरणी रामप्यारी नै सोच्या आज बालकां का मुंहजबानी टैस्ट ले ल्यूं। उसनैं टाबरां तैं क्लास मैं स्वर अर व्यंजन का फर्क बूझ लिया। नत्थू तो जणूं जवाब देण नैं तैयार ए बैठ्या था, सो धैड़ दे सी बोल्या- जी स्वर तो मुंह तैं बाहर लिकड़ै हैं अर व्यंजन मुंह के रस्ते भीत्तर जावैं हैं।