बीते गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के एक मस्जिद व मदरसे में जाने तथा इमामों के सबसे बड़े संगठन ऑल मुस्लिम इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमेर अहमद इलियासी से बातचीत की खबर सुर्खियों में रही। इसे देश के दोनों बड़े समुदायों के बीच संवादहीनता को दूर करने की दिशा में सकारात्मक कदम के रूप में देखा गया। इस दौरान जब भागवत का परिचय मदरसे के विद्यार्थियों से राष्ट्रपिता व राष्ट्रीय ऋषि के रूप में कराया गया तो भागवत ने कहा ‘हम सब लोग राष्ट्र की संतानें हैं’। यह खबर ऐसे मौके पर आई जब पूरे देश में एनआईए ने कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई से जुड़े स्थानों पर एक साथ छापे डाले और काफी लोगों को गिरफ्तार किया। दरअसल भागवत की यह बातचीत इलियासी से दिल्ली में इंडिया गेट के निकट स्थित मस्जिद में आधे घंटे से अधिक समय तक चली। हालांकि, संघ की ओर से ऐसी बातचीत की कोशिश पहले भी हुई। लेकिन शायद यह पहली बार है कि संघ प्रमुख किसी मस्जिद व मदरसे में गये हों। समरसता को लेकर भागवत के कई बयान पिछले दिनों चर्चा में रहे हैं। इसमें वह बयान भी शामिल है, जिसमें उन्होंने हिंदू-मुसलमानों का डीएनए एक बताया और कहा कि मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान अधूरा है। इससे पहले वे कह चुके हैं कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढा जाये? कहा जा रहा है कि संघ का यह कदम अपनी मुस्लिम विरोधी छवि को तोड़ने का उपक्रम है जिससे मुसलमानों के एक प्रगतिशील तबके को साथ जोड़ा जा सके। इससे पहले भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पांच बड़े मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मुलाकात की थी और दोनों समुदायों के बीच व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया। इस मुलाकात में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, दिल्ली के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जमीरुद्दीन शाह, पत्रकार शाहिद सिद्दीकी व कारोबारी सईद शेरवानी शामिल थे।
निस्संदेह देश में असहिष्णुता व अविश्वास को दूर करने के लिये संवाद ही कारगर रास्ता हो सकता है। ऐसे ही प्रयास संघ के द्वारा विगत में भी किये गये हैं। इनमें कुछ मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि व बुद्धिजीवी शामिल रहे हैं। दिल्ली में मुस्लिम बुद्धिजीवियों से हुई बैठक में उन मुद्दों पर भी चर्चा हुई जो दोनों समुदायों के बीच खटास पैदा करते हैं। मसलन बहुसंख्यकों को काफिर कहने व गोहत्या से जुड़े मुद्दे पर भी विमर्श हुआ था। वहीं अल्पसंख्यकों की परंपरागत छवि को उभारने व उनकी निष्ठाओं पर संदेह को लेकर मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने संघ प्रमुख से बातचीत की। दरअसल, मुस्लिम बुद्धिजीवियों का वर्ग चाहता है कि संघ के हस्तक्षेप से अल्पसंख्यकों में असुरक्षाबोध को खत्म किया जाये। साथ ही अनावश्यक रूप से धार्मिक विवादों को हवा देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की भी बात कही गई। मुस्लिम बुद्धिजीवी बातचीत के क्रम को निरंतर बनाये रखने के पक्ष में नजर आये। दरअसल, मुस्लिम बुद्धिजीवियों का यह वर्ग मानता है कि समाज में एक ऐसा थिंक टैंक बनाया जाये जो उनके मुद्दों को तार्किक रूप से सामने रख सके। इसी क्रम में संघ प्रमुख ने संगठन के कुछ लोगों को जिम्मेदारी दी है कि वे मुस्लिम समुदाय के प्रभावी व्यक्तियों से निरंतर संवाद व संपर्क बनाये रखें। साथ ही संघ प्रमुख ने इस बात पर भी बल दिया कि मदरसों की शिक्षा पद्धति का आधुनिकीकरण हो ताकि वहां से निकले बच्चे समय के साथ कदमताल कर सकें। तभी देश मजबूत हो सकेगा। निस्संदेह यह वक्त की दरकार है कि देश में दोनों संप्रदायों के बीच सद्भाव व सौहार्द को बढ़ावा मिले। इसके लिये जरूरी है कि दोनों संप्रदाय एक-दूसरे के विश्वासों व आस्था का सम्मान करें। फिर न कोई किसी को काफिर कहे और न किसी को जेहादी। दरअसल, असामाजिक तत्व इन शब्दों की गलत व्याख्या करके निहित स्वार्थों को पूरा करते हैं। देश में समरसता बनाये रखने के लिये बुद्धिजीवियों, लेखकों व पत्रकारों को प्रगतिशील भूमिका का निर्वहन करना चाहिए। देश की विविधता की संस्कृति के प्रति संवेदनशील व्यवहार जरूरी है।