मिनियापोलिस, 26 जून (एजेंसी)अमेरिका में अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के मामले में मिनियापोलिस के पूर्व पुलिस अधिकारी डेरेक चौविन को 22 साल 6 महीने जेल की सजा सुनायी गयी है। चौविन ने फ्लॉयड की गर्दन को अपने घुटने से दबाया था, जिसके कारण दम घुटने से उनकी मौत हो गयी थी। इस घटना के बाद अमेरिका में नस्ली भेदभाव के खिलाफ सबसे बड़ा आंदोलन हुआ था। यह फैसला ऐसे वक्त में आया जब करीब एक साल की चुप्पी के बाद चौविन ने फ्लॉयड के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की और उम्मीद जतायी कि आखिरकार अब ‘उनके मन को कुछ शांति मिलेगी।’ अश्वेत व्यक्ति की हत्या के मामले में किसी पुलिस अधिकारी को दी गयी अब तक कि यह सबसे लंबी अवधि वाली जेल की सजा है। हालांकि, फ्लॉयड के परिवार और अन्य अब भी निराश है क्योंकि अभियोजकों ने इस अपराध के लिए चौविन को 30 साल की सजा देने का अनुरोध किया था। अच्छे बर्ताव पर चौविन (45) को अपनी दो तिहाई सजा पूरी करने या करीब 15 साल जेल में बिताने के बाद पैरोल पर रिहा किया जा सकता है। मिनियापोलिस प्रदर्शन की नेता नेकिमा लेवी आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा, ‘सिर्फ सजा की अवधि अधिक होना ही पर्याप्त नहीं है।’ न्यायाधीश पीटर काहिल ने राज्य के दिशानिर्देशों से ऊपर उठकर इसके तहत तय 12 साल 6 महीने की सजा से अधिक का दंड सुनाया और चौविन को अपने अधिकार और पद के दुरुपयोग तथा फ्लॉयड के प्रति क्रूरता दिखाने का दोषी पाया। फ्लॉयड के परिवार के वकील बेन क्रम्प ने कहा कि परिवार को उम्मीद है कि चाौविन को आगामी संघीय नागरिक अधिकारों की सुनवाई के दौरान अधिकतम सजा होगी। उन्होंने कहा कि यह मिनिसोटा में किसी पुलिस अधिकारी को मिली अब तक की सबसे लंबी अविध की सजा है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।