कारगर हो समाधान
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण में पराली जलाने का अहम योगदान है। कोरोना संकट काल में किसानों और केंद्र-राज्य सरकारों द्वारा इस पर काबू पाने की सख्त जरूरत थी। लेकिन सभी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते नजर आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना महामारी की रफ़्तार भी बढ़ना तय है। पराली जलाने से धुंध की समस्या भी विकराल रूप धारण कर सामान्य जन-जीवन को प्रभावित कर देती है। सरकारों द्वारा एक दीर्घकालिक योजना के तहत धान के भूसे को व्यावसायिक रूप से निपटाने की किफायती प्रक्रियाएं विकसित करने से ही कारगर समाधान हो सकेगा।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
साझी जिम्मेदारी
अक्तूबर के अंत और नवम्बर के प्रारंभ में प्रदूषण की स्थिति भयानक होती है। सरकारें समय रहते इस समस्या का समाधान क्यों नहीं करतीं। गेहूं की बिजाई के कारण इस समय किसान के पास समय बहुत कम होता है। इसलिए पराली जलाना किसान की मजबूरी है। लेकिन यदि सरकार पराली न जलाने का कोई विकल्प तैयार करे तो निस्संदेह किसान उसका फायदा जरूर उठाएंगे। सरकार को पराली से संबंधित कोई उद्योग स्थापित करना चाहिए। वैसे किसान का भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह धान के अवशेष व पराली में आग न लगाए बल्कि इसका खाद के रूप में प्रयोग करे।
सोहन लाल गौड़, कैथल
गंभीरता से सोचें
यह बात साबित हो गई है कि पराली जलाने की प्रदूषण में चालीस प्रतिशत भूमिका होती है तो ऐसे में पराली का जलाया जाना बिल्कुल बंद होना चाहिए। किसान पराली जलाने के साथ दूसरों के जीवन से खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं? उन्हें इसके विकल्प के बारे में गंभीरता से सोच-विचार करना चाहिए। सरकारें भी राजनीति करना छोड़ें और किसानों की सहायता के लिए आगे आएं। ऐसी योजना बनाएं, जिससे पराली का निष्पादन कम खर्च पर खेत पर ही हो जाए। इससे खेत की उत्पादकता भी बढ़ेगी तथा पराली से होने वाले प्रदूषण से भी मुक्ति मिल सकेगी।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
बहुआयामी विकल्प
एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार, समाज के साथ किसान काे भी संकल्पित होना ही चाहिए। सरकार धान को नहरी इलाकों तक, श्रमसाध्य, समयबद्धता में दृढ़ता से सीमित कर व भूजल स्तर को नीचे जाने से रोक सकती है। धान उत्पादक क्षेत्रों में खुंभी बैड, गत्ते, कागज आदि बनाने को बढ़ावा दिया जाये। किसानों को पराली को खाद तैयार करने की दवाइयां, छोटे टुकड़े बनाने वाली मशीनें व सीधी बिजाई की मशीनें सस्ते में दी जाएं। पराली ढेर को गलाने तक पड़ा रखा जाये या बिजली बनाने में प्रयोग किया जाये।
आचार्य रामतीर्थ, रेवाड़ी
प्रशिक्षित करें
वायु प्रदूषण में 40 फ़ीसदी योगदान पराली जलाने का है। कोरोना काल में स्थिति और भी भयभीत करने वाली है। सरकार नियम तो बना देती है, मगर इन नियमों का पालन सुनिश्चित नहीं करती। वहीं पराली से निजात पाने के वैकल्पिक तरीकों की भी जानकारी किसानों को देनी चाहिए। सरकार द्वारा किसानों को सही प्रशिक्षण, सहायता और कारगर रसायन से पराली को खाद में परिवर्तित करने का सही विकल्प देना होगा। पराली को काटकर पशु चारे के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। सरकार को इन विकल्पों के बारे में किसान को जागरूक करना होगा।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़
लाभकारी खेती का विकल्प
पराली राज्य सरकारों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। पराली को खाद में परिवर्तन होने में समय लगता है, इसीलिये उनको मजबूरन पराली को जलाना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर यातायात, फैक्टरियों से निकला धुआं और अन्य हानिकारक गैसें वायु प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। किसान गेहूं, धान को नहीं छोड़ सकता चूंकि इतनी बचत किसी अन्य फसल में नहीं है। जब तक सरकार सब फसलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को प्रभावी और लाभकारी नहीं बनाती तब तक किसान के लिए धान छोड़ने का फैसला बहुत ही मुश्किल है। किसानों को बलि का बकरा बनाने की बजाय सरकार को इसका कोई स्थाई समाधान निकालना चाहिए।
संदीप कुमार, चंडीगढ़
जीवन रक्षा हेतु पहल
पराली निपटान के सुरक्षित विकल्प मुख्यतः दो हैं; एक रासायनिक प्रक्रिया से खेत में ही खाद बनाना और दूसरा है पराली को खेत से निकाल कर उसका अन्यत्र प्रयोग करना। चूंकि खेत में खाद बनाने में ज्यादा समय लगेगा, इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में दूसरा विकल्प बेहतर है। इससे खेत जल्दी खाली होगा और पराली का उपयोग कागज़, स्ट्रॉ बोर्ड जैसे उत्पादों को बनाने या फिर ताप बिजली संयंत्रों में किया जा सकेगा। हालांकि दूसरे विकल्प में खर्च ज्यादा दिखता है लेकिन पर्यावरण नियंत्रण पर होने वाले खर्च और मानव जीवन को होने वाले नुकसान के मुक़ाबले यह बहुत कम है।
बृजेश माथुर, गाज़ियाबाद