छब्बीस सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का ‘नीतीश कुमार की अग्नि परीक्षा से कम नहीं चुनाव’ लेख वास्तव में बिहार की वर्तमान राजनीति का चित्र उकेरने वाला था। लेखक से सहमत हुआ जा सकता है कि इन चुनावों में असली चुनौती नीतीश कुमार के सामने है। उन्हें सत्ता के विरुद्ध उपजने वाले आक्रोश का सामना करना पड़ेगा, जो स्वाभाविक भी है। नीतीश कुमार की छवि सुशासन बाबू की रही है, उनके दामन में कोई दाग भी नहीं है। लेकिन केंद्र के कृषि सुधार कानूनों का खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। कोविड-19 के चलते बिहार चुनाव कितना सुरक्षित होगा, कहना मुश्किल है। हालांकि, चुनाव आयोग ने इसके लिए दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं, लेकिन शासन और प्रशासन उन पर कितना अमल करवा पाता है, यह बहुत महत्वपूर्ण होगा।
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
देशभक्ति का जज्बा
शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके नौजवान साथियों के राष्ट्र भक्ति के शब्द अहसास दिलाते हैं कि इन नौजवान देशभक्तों के दिल में अपने देश को आजाद करवाने के लिए कितना जोश था। देशभक्तों के जन्मदिन या शहीदी दिन पर सबको उनकी कुर्बानियों को याद करते हुए यह प्रण लेना चाहिए कि कभी कोई ऐसा काम नही करेंगे, जो देशहित के लिए उचित न हो। देशहित के कामों के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
किसान और राजनीति
हरियाणा के सीएम तथा गृह मंत्री कहते हैं कि किसानों पर लाठीचार्ज नहीं हुआ। जबकि डिप्टी सीएम चौटाला ने लाठीचार्ज हुआ मानकर निन्दा भी कर दी। खट्टर साहब ने गोपाल कांडा से लम्बी बातचीत करके सियासी चाल चली, जो काम कर गई। जेजेपी को कुर्सी बचाने के लिए कृषि बिलों का समर्थन करना पड़ा।
रामधारी खटकड़, रोहतक