दो सितंबर के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह के ‘अपने संकट को अवसर में बदले कांग्रेस’ लेख में बिल्कुल सही कहा गया है कि कांग्रेस में पहली बार उठे असहमति के स्वर को सुना ही जाना चाहिए। तय था कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में घूमघाम कर राजमाता अपने माथे पर ही तिलक लगा लेंगी और जो ख़िलाफ़ जायेंगे, उन्हें सज़ा भी देंगी। पत्र-प्रकरण से जुड़े तेईस वरिष्ठ और युवा सदस्यों ने साहस किया। सिब्बल और आज़ाद जैसे नेताओं ने संसद और कोर्ट में कांग्रेस की जड़ों को उखड़ने नहीं दिया और उन्हें विद्रोही का सिला दिया गया। इस निःसंगता से किसी का भी मोह भंग हो सकता है। लगता है कांग्रेस में वंशवाद का ज़माना ही लदने वाला है।
मीरा गौतम, जीरकपुर
अनूठे प्रणब दा
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपना करिअर कॉलेज प्राध्यापक के रूप में और बाद में एक पत्रकार के रूप में शुरू किया था। सन् 1984 में, युरोमनी पत्रिका ने उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्तमंत्री के रूप में मूल्यांकन किया। उन्हें रक्षा, वित्त, विदेश, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री होने का गौरव भी हासिल है। सन् 2007 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया तो 26 जनवरी, 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अपने जीवनकाल के अंतिम दिनों में भी वे सामाजिक कार्यों में क्रियाशील रहे।
दिवाकर तिवारी, खंडवा
सोच बदलें
आज़ादी के सात दशक बाद भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। आज भी महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। कभी वह यौन शोषण का तो कभी लोगों की संकीर्ण मानसिकता का शिकार होती हैं। जरूरी है समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक सोच बने तभी सही मायनो में आधी आबादी को उसका हक मिलेगा।
सिमरन, कैथल
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