13 नवंबर को प्रकाशित राजकुमार सिंह के ‘बिहार में हार-जीत…’ लेख ने बताया कि विदेशी तर्ज पर किये गये सर्वे सच साबित नहीं हुए। एक बड़ा दल महाराष्ट्र की तरह विपक्ष में बैठने वाला है। अब, भाजपा नीतीश के लिए दिल खोलकर बैठ गयी है। यह कमिटमेंट है और नीतीश के दोनों हाथों में लड्डू और घी-शक्कर है। आश्चर्यजनक यह है कि एनडीए ने बाज़ी ही पलट दी। बेहद कमज़ोर स्थिति में भी कांग्रेस का एग्रेसिव बने रहना जनता को रास नहीं आया। देशहित के सही कामों को सही कहने का बड़ा मन भी होना ज़रूरी है। अब चुनाव किसी प्रांत भर के नहीं रह गये हैं। इनमें पूरे देश की धमक को सुना जा सकता है। अब रही बात चिराग़ पासवान की तो राजनीति के पहले पाठ में ही वह सार्थक राजनीति के पन्नों पर स्वयं स्याही पोतते नज़र आये।
मीरा गौतम, जीरकपुर
बेअसर राहत
देश की अर्थव्यवस्था दिनोंदिन गिरती जा रही है। सरकार ने लाखों-करोड़ों रुपये के राहत पैकेज की तो घोषणा की थी लेकिन अभी तक किन लोगों को आर्थिक पैकेज की सुविधा प्राप्त हुई है, वह अभी तक कहीं देखने को नहीं मिल रहा है। मीडिया वाले भी अब चुप हैं।
चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम