किसान आंदोलन से आमजन को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अब तो पंजाब में एक दूरसंचार मोबाइल कंपनी के टावरों को नुकसान पहुंचाने की खबरें किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए सामने आ रही हैं। इससे पंजाब के जिन क्षेत्रों में यह गलत काम हो रहा है, वहां के लोगों को मोबाइल नेटवर्क की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। खासतौर पर ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को अब जबकि परीक्षा का समय पास है। आंदोलन कर रहे किसान नेताओं को चाहिए कि वे इस पर गंभीरता से विचार करें कि क्या आंदोलन इस तरह से होना चाहिए कि आमजन को भारी परेशानी हो?
राजेश कुमार चौहान, जालंधर
आईना दिखाया
दैनिक ट्रिब्यून के 28 दिसंबर के अंक में प्रकाशित मुकुल व्यास के ‘प्रकृति से क्रूरता की देन वायरस संकट’ लेख में मनुष्य का प्रकृति के प्रति क्रूर रूप का विश्लेषण करने वाला था। अगर कुदरत के प्रति यही रवैया रहा तो और ऐसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति का दोहन हद से ज्यादा कर रहा है। भविष्य में ऐसे वायरसों और बीमारियों को रोकने के लिए अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रकृति के स्वास्थ्य का भी पूरी तरह ध्यान रखना होगा। लेख मानवता को उसकी क्रूरता का फल कैसे मिला और आगे कैसे मिलेगा यह दिखाने में सक्षम है।
नवज्योत सिंह, ऊना, हि.प्र.
देखने का नजरिया
लॉकडाउन के दौरान सिख पंथ द्वारा गरीब, कमजोर और असहाय लोगों के लिए लंगर लगवाया गया। संकट के समय उनकी इस भूमिका को सराहा गया। अब जब यही पंथ कृषि कानून का विरोध कर रहे आंदोलनकारी किसानों को लंगर करवा रहा है तो सवाल उठाये जा रहे हैंै। कृषि कानून जायज है या गलत, यह बहस का मुद्दा नहीं है। लेकिन आंदोलनकारियों को जो भी भोजन-पानी मुहैया करवाया जा रहा है, वह केवल इनसानियत व मानवतावादी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर देखा जाना चाहिए।
हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन, म.प्र.