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यूपी में मदरसा छात्रों को सरकारी स्कूलों में भेजने का आदेश, जमीयत ने बताया 'असंवैधानिक'

लखनऊ, 12 जुलाई (भाषा) Madrassa Students: उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम छात्र-छात्राओं और गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सभी विद्यार्थियों को बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में प्रवेश देने...
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सांकेतिक फोटो। एएनआई फाइल फोटो
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लखनऊ, 12 जुलाई (भाषा)

Madrassa Students: उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम छात्र-छात्राओं और गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सभी विद्यार्थियों को बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में प्रवेश देने के आदेश जारी किये हैं।

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मुस्लिम संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इस आदेश को 'असंवैधानिक' करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।

राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने हाल ही में प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को जारी आदेश में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के विगत सात जून के एक पत्र का हवाला देते हुए राज्य के सभी सरकारी वित्तपोषित मदरसों में पढ़ने वाले गैर मुस्लिम छात्र—छात्राओं को औपचारिक शिक्षा दिलाने के लिये बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में दाखिल कराने का हुक्म दिया है।

विगत 26 जून को जारी इस पत्र में यह भी कहा गया है कि राज्य के सभी ऐसे मदरसे जो उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, उनमें पढ़ने वाले सभी बच्चों को भी परिषदीय स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाए।

इस सम्पूर्ण प्रक्रिया के लिये जिलाधिकारियों द्वारा जनपद स्तर पर समितियों का गठन किया जाए। देश में मुसलमानों के सबसे बड़े सामाजिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सरकार के इस आदेश को 'असंवैधानिक' और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन करने वाली कार्रवाई करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मदरसे में किसी भी छात्र को जबरन नहीं पढ़ाया जाता। उन्होंने कहा कि मदरसों में जो भी गैर-मुस्लिम छात्र पढ़ रहे हैं वे अपने अभिभावकों की मर्जी से ही पढ़ रहे हैं।

ऐसे में उन्हें या गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्र-छात्राओं को जबरन परिषदीय स्कूलों में दाखिल कराना समझ से परे है। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, अतिरिक्त मुख्य सचिव/प्रधान सचिव, अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ उत्तर प्रदेश और निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण को पत्र लिखकर इस 'असंवैधानिक' कार्रवाई से बचने की अपील की है।

उन्होंने कहा, ''इस आदेश से राज्य के हजारों स्वतंत्र मदरसे प्रभावित होंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश वह राज्य है जहां बड़े-बड़े स्वतंत्र मदरसे हैं, जिनमें दारुल उलूम देवबंद और नदवतुल उलमा इत्यादि भी शामिल हैं।''

मदनी ने पत्र में कहा, ''राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सहायता प्राप्त मदरसों के बच्चों को उनके धर्म के आधार पर अलग करने का निर्देश नहीं दे सकता। यह देश को धर्म के नाम पर विभाजित करने वाला कृत्य है। शिक्षा का चयन बच्चों और उनके माता-पिता एवं अभिभावकों की इच्छा का मामला है। कोई भी राज्य नागरिकों से शिक्षा का चयन करने का अधिकार नहीं छीन सकता।''

मौलाना मदनी ने कहा, ''उत्तर प्रदेश सरकार को यह समझना चाहिए कि मदरसों की अलग कानूनी पहचान और दर्जा है जैसा कि मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 1(5) में इस्लामी मदरसों को छूट देकर मान्यता दी गई है। लिहाजा जमीअत यह मांग करती है कि गत 26 जून के सरकारी आदेश को वापस लिया जाए।''

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