India Pakistan War: 26 साल... जब भारत ने कुचली थी पाक की नापाक चाल
अजय बनर्जी/ट्रिब्यून न्यूज सर्विस, नई दिल्ली
India Pakistan War: पहलगाम आतंकी हमले के बाद परमाणु संपन्न भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का माहौल है। कमोबेश ऐसा ही तनाव दोनों देशों के बीच आज से ठीक 26 साल पहले भी पैदा हुआ था। 3 मई 1999 को ताशी नामग्याल नाम का चरवाहा अपनी खोई याक की तलाश में था। इसी दौरान उसने लद्दाख की बटालिक पर्वत श्रृंखला में नियंत्रण रेखा (LoC) के भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तान सेना के जवानों को देखा। पिछले साल दिसंबर में दिवंगत हुए नामग्याल ने भारतीय सेना को सूचना दी, जिससे 'ऑपरेशन विजय' की शुरुआत हुई। कारगिल युद्ध मई से जुलाई तक चला।
हालांकि, भारतीय निगरानी एजेंसियों ने फरवरी 1999 में हवाई टोही के दौरान पाकिस्तानी गतिविधियों को रिकॉर्ड किया था, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर यात्रा की थी, पर असली खतरे का आभास भारत को 3 मई को हुआ।
पाकिस्तानी सैनिकों ने मुश्कोह-ड्रास-कारगिल-बटालिक-तुर्तुक धुरी के 168 किमी लंबे क्षेत्र में कई चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारत को 527 सैनिकों की शहादत देनी पड़ी। भारतीय सेना और वायुसेना की ताकत और कूटनीतिक प्रयासों से LoC की पवित्रता बहाल हुई। वाजपेयी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेना को LoC पार न करने का निर्देश दिया।
1971 के भारत-पाक युद्ध और 1999 के कारगिल संघर्ष के बीच के 28 वर्षों में तकनीकी प्रगति हो चुकी थी और सोवियत संघ के विघटन के बाद वैश्विक रणनीति बदली थी। मई 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद भारत-पाक दोनों पर अमेरिकी प्रतिबंध लगे थे। उस समय ओसामा बिन लादेन अमेरिका की प्राथमिकता नहीं था और उपग्रह चित्रण भारत की सैन्य रणनीति में नया था।
पाकिस्तान की योजना और उसकी विफलता
ठंडी में भारत 15,000 से 19,000 फीट की ऊंचाई वाले लगभग 140 पोस्ट खाली कर देता था। पाकिस्तान ने इसी सर्दी में 'ऑपरेशन कोह-ए-पैमा' शुरू कर अक्टूबर 1998 में पोस्टों पर कब्जा कर लिया।
तत्कालीन पाक सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ की योजना थी कि सियाचिन के लिए जाने वाले दोनों रास्तों को काट दिया जाए और लद्दाख के हिस्से पर कब्जा कर अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप को आमंत्रित किया जाए।
पाकिस्तानी ISI के अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल शाहिद अजीज ने अपनी पुस्तक Putting Our Children in Line of Fire में लिखा, “हमारा स्पष्ट उद्देश्य सियाचिन की आपूर्ति काटना और भारत को पीछे हटने पर मजबूर करना था।” हालांकि, यह योजना सैन्य दृष्टि से कमजोर थी।
पाकिस्तान सेना की मीडिया शाखा में रहे कर्नल अशफाक हुसैन (सेवानिवृत्त) ने अपनी पुस्तक Witness to Blunder: Kargil Story Unfolds में मुशर्रफ की रणनीति पर सवाल उठाए। पाकिस्तान का यह अनुमान कि “जम्मू-कश्मीर में साहसिक कब्जा नई दिल्ली द्वारा चुनौती नहीं दिया जाएगा” गलत साबित हुआ।
भारत का सैन्य आदेश था – घुसपैठ को समाप्त करना और LoC की पवित्रता बहाल करना। इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई। तीन लक्ष्य थे: घुसपैठ को रोकना, घुसपैठियों को खदेड़ना और अंततः सीमा की रक्षा करना।
कूटनीतिक स्तर पर भारत ने घुसपैठ को पाकिस्तान द्वारा प्रचारित 'कश्मीर मुद्दे' से अलग कर दिया। 4 जुलाई को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की वाशिंगटन में हुई बैठक में पाकिस्तान से LoC बहाल करने की अपील की गई। इसमें कश्मीर का कोई ज़िक्र नहीं किया गया।