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Gravity Effects अंतरिक्ष से वापसी आसान नहीं, यात्रियों को झेलनी पड़ती हैं मुश्किलें!

नयी दिल्ली, 19 मार्च (एजेंसी) Gravity Effects अंतरिक्ष में तैरते हुए अंतरिक्ष यात्रियों को देखना जितना रोमांचक लगता है, उतना ही कठिन होता है उनके लिए पृथ्वी पर लौटने के बाद सामान्य जीवन में ढलना। भारहीनता के माहौल में महीनों...
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नयी दिल्ली, 19 मार्च (एजेंसी)

Gravity Effects अंतरिक्ष में तैरते हुए अंतरिक्ष यात्रियों को देखना जितना रोमांचक लगता है, उतना ही कठिन होता है उनके लिए पृथ्वी पर लौटने के बाद सामान्य जीवन में ढलना। भारहीनता के माहौल में महीनों बिताने के बाद अंतरिक्ष यात्री जब वापस लौटते हैं, तो उन्हें चलने-फिरने, संतुलन बनाए रखने और यहां तक कि बोलने तक में कठिनाई होती है।

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हाल ही में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर तथा रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्सांद्र गोरबुनोव स्पेसएक्स के ड्रैगन यान से सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौटे। विलियम्स और विल्मोर पिछले साल 5 जून को बोइंग के नए स्टारलाइनर यान से आठ दिन के मिशन के लिए रवाना हुए थे, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते वे करीब नौ महीने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में फंसे रहे।

फिर तालमेल बिठाना सबसे बड़ी चुनौती

अंतरिक्ष में महीनों तक भारहीनता का सामना करने के बाद पृथ्वी पर लौटने पर अंतरिक्ष यात्रियों को कई तरह की शारीरिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण के अभाव में शरीर के संतुलन को बनाए रखने वाला वेस्टिबुलर सिस्टम कमजोर हो जाता है, जिससे उन्हें चलते समय चक्कर आ सकते हैं।

बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन, ह्यूस्टन की एक रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी पर लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को मतली, संतुलन खोना, देखने में धुंधलापन, सिर चकराना और ‘बेबी फीट’ जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है।

क्या है ‘बेबी फीट’?

अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के कारण यात्रियों के तलवों की मोटी परत उतर जाती है और उनके पैर बहुत मुलायम हो जाते हैं। जब वे वापस पृथ्वी पर आते हैं और चलने की कोशिश करते हैं, तो पैरों पर अत्यधिक दबाव महसूस होता है, जिससे उन्हें चलने में परेशानी होती है।

स्पेस सिकनेस और ग्रैविटी सिकनेस

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण का अभाव मस्तिष्क को संतुलन बनाए रखने की जानकारी भेजने वाले वेस्टिबुलर अंगों को प्रभावित करता है, जिससे कई अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस सिकनेस हो जाती है। इसके लक्षण मतली, उल्टी और सिर चकराने के रूप में सामने आते हैं। जब अंतरिक्ष यात्री वापस पृथ्वी पर लौटते हैं, तो गुरुत्वाकर्षण दोबारा काम करने लगता है, लेकिन दिमाग तुरंत इसे स्वीकार नहीं कर पाता, जिससे उन्हें ग्रैविटी सिकनेस होने लगती है।

जापानी अंतरिक्ष एजेंसी जेएएक्सए के अनुसार, अंतरिक्ष यात्री जब पृथ्वी पर लौटते हैं, तो उन्हें दोबारा सामान्य होने में कई हफ्तों तक का समय लग सकता है।

हड्डियों और मांसपेशियों पर असर

शून्य गुरुत्वाकर्षण के कारण हड्डियों का घनत्व हर महीने करीब 1% तक घट जाता है। अगर इसका ध्यान न रखा जाए, तो हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और भविष्य में फ्रैक्चर का खतरा बढ़ सकता है।

नासा के अनुसार, अंतरिक्ष में रहने के दौरान मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, क्योंकि शरीर को खुद को सहारा देने की जरूरत नहीं होती। अगर अंतरिक्ष यात्री नियमित रूप से व्यायाम न करें, तो वापसी के बाद महीनों तक वे ठीक से चल भी नहीं सकते।

इससे बचने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में प्रतिदिन दो घंटे तक ट्रेडमिल, स्थिर साइकिल और अन्य व्यायाम करने की सलाह दी जाती है।

रक्त संचार और हृदय संबंधी दिक्कतें

अंतरिक्ष में शरीर के तरल पदार्थ ऊपर की ओर खिंचते हैं, जिससे अंतरिक्ष यात्री फूले हुए दिखते हैं। पृथ्वी पर लौटने के बाद शरीर को दोबारा रक्त संचार सही करने में कठिनाई होती है, जिससे उन्हें ‘ऑर्थोस्टेटिक हाइपोटेंशन’ यानी खड़े होने पर चक्कर आने की समस्या हो सकती है।

बोलने में कठिनाई – जब जीभ भी महसूस होती है भारी!

कनाडाई अंतरिक्ष यात्री क्रिस हैडफील्ड ने बताया कि जब वह 2013 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से वापस लौटे, तो उन्हें बोलने में दिक्कत होने लगी। हैडफील्ड ने कहा, "मुझे अचानक अपनी जीभ और होठों का वजन महसूस होने लगा। स्पेस में रहते हुए मैं भूल चुका था कि जीभ और होठों का भी वजन होता है। मुझे अपने बोलने के तरीके को फिर से बदलना पड़ा।"

रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर

अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे पृथ्वी पर लौटने के बाद संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसीलिए, लौटने के बाद अंतरिक्ष यात्रियों की स्वास्थ्य निगरानी कई हफ्तों तक की जाती है।

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