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जीवन के अनुभवों का शब्दांकन

पुस्तक समीक्षा
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रश्मि बजाज

पिछले दो दशकों से कथा-विधा हिंदी साहित्य की अभीष्ट विधा रही है। उपन्यास एवं कहानियों के अतिरिक्त लघु-कथा लेखन के प्रति रचनाकारों एवं पाठकों की अभिरुचि निरंतर बढ़ी है। रचनाकार रेखा मित्तल की दूसरी पुस्तक एवं प्रथम कहानी संग्रह ‘कागज की कश्ती’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। 70 कहानियों वाले इस संग्रह की अधिकतर कहानियां लघु-कथाओं की श्रेणी में रखी जा सकती हैं। लेखिका के अपने शब्दों में ‘समाज और अपने जीवन की घटनाओं से बहुत कुछ मेरे चेतन-अवचेतन मन में वर्षों से संगृहीत होता रहा। उन्हें अहसासों के शब्दों की माला में पिरो कर छोटी-बड़ी कहानियों के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूं।’

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संग्रह की अधिकतर कहानियां पारिवारिक-दांपत्य जीवन एवं मानवीय संबंधों की त्रासदी के समकालीन सत्य तथा स्त्री-मन के कोमल भाव जगत को चित्रित करती हैं। रचनाकार ने कुछ प्रासंगिक सामाजिक मुद्दों को भी अपनी कहानियों में उठाया है। ‘वृद्धाश्रम’ वर्तमान परिवारों में बुजुर्गों की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करती है। ‘सौदा’ तथा अनेक अन्य कहानियां छद्म समाजसेवियों के निंदनीय पाखंड की हक़ीक़त को समक्ष लाती हैं।

कहानियों में परिवार तथा समाज में स्त्री-जीवन एवं अस्मिता से जुड़ी पीड़ा को भी निरंतर अभिव्यक्ति मिली है।

लघुकथा की सबसे बड़ी चुनौती है कम से कम शब्दों में कुशलतापूर्वक अधिक से अधिक समा देना- सघन संवेदनाओं की कलात्मक प्रस्तुति। शिल्प एवं शैली की दृष्टि से इस संग्रह में अधिक परिपक्वता दृष्टिगोचर नहीं होती। अधिकतर कहानियां ‘अनुभव’ की अभिव्यक्ति ही बनकर रह गई हैं। आशा है कि कथाकार के भावी कथा-संग्रह बेहतर शिल्पगत सजगता एवं सघनता से संपन्न होंगे।

पुस्तक : कागज़ की कश्ती रचनाकार : रेखा मित्तल प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 105 मूल्य : रु. 200.

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