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शब्दों में रची-बसी आत्मा की आवाज़

पुस्तक समीक्षा
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सुभाष रस्तोगी

नीलेश मिसरा एक जाने-माने फिल्मी गीतकार हैं और चालीस से अधिक फ़िल्मों में गीत लिख चुके हैं। लेकिन उनके फिल्मी गीतों में जिस खासियत को अलग से रेखांकित किया जा सकता है, वह यह है कि इन गीतों में भी कविता आत्मा की तरह धड़कती महसूस होती है। इसका कारण यह है कि वे लंबे समय से कविताएं लिखते आए हैं। कविता और गीत लिखने का संस्कार उन्हें अपनी मां से मिला।

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‘मैं अक्सर सोचता हूं’ नीलेश मिसरा का प्रथम कविता-संग्रह है, जिसमें कुल 50 कविताएं संगृहीत हैं। इस संग्रह में गीत हैं, ग़ज़लें हैं और मुक्त छंद भी हैं, जो इस बात का प्रमाण हैं कि वे हिंदी कविता की लंबी विरासत को गहराई से समझते हैं और साथ ही आज के मिज़ाज से भी पूरी तरह वाकिफ हैं।

कवि की निम्न पंक्तियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जो सीधे पाठकों से एक आत्मीय संवाद स्थापित करती हैं—

‘मन है कलंदर, मन है जोगी/ मन जो चाहे, मन की होगी/ फिर क्यों मन ने झूठ को पूजा/ दुःख-तकलीफें सारी भोगी।’

नीलेश मिसरा की कविता का बिंब-विधान जितना नया है, उतना ही पारंपरिक भी। नए बिंब-विधान का एक उदाहरण देखें—

‘इस लम्हें में इक याद है/ चाबी से खुलती है/ नीयत में हल्की-सी/ खराबी से खुलती है।’

और पारंपरिक बिंब-विधान का एक दृश्य देखें—

‘अखियां किनारों से जो/ बोली थीं इशारों से जो/ कह दो जो फिर से तो ज़रा/ भूले से छुआ था तोहे/ तो क्या हुआ था मोहे।’

नाज़ुक ख्यालों का ऐसा जीवंत दृश्य समकालीन कविता परिदृश्य में संभवतः विरल है—

‘जो दिल में है/ सब कुछ मैं तुमसे कह पाता हूं/ तुम मेरी बातों की गुल्लक हो।’

नीलेश की कविता का सबसे समृद्ध क्षेत्र वह है, जहां वे अपनी जड़ों से जुड़ते दिखाई देते हैं। इस संदर्भ में ये पंक्तियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं—

‘उस आंगन में पड़ोसी के/ आम के पेड़ का साया था/ बस आंगन में मां ने पांवों में/ आलता लगाया था।’

नीलेश की कविताओं में प्रेम, विरह, मिलन, तन्हाई के दृश्य तो हैं ही, आम आदमी की पीड़ा से जुड़ने के दृश्य भी हैं, जिनकी सादगी में बड़े गहरे अर्थ छिपे हैं—

‘मेरी दुनिया नहीं है सिर्फ मुझ तक/ मेरे दुःख आज छोटे हो गए हैं/ मैं चेहरे औरों के अब यूं पहनता/ कहीं गुम सब मुखौटे हो गए हैं।’

समग्रतः, नीलेश मिसरा के हाल ही में प्रकाशित कविता-संग्रह ‘मैं अक्सर सोचता हूं’ में संगृहीत कविताएं सादगी से कहे गए बड़े गहरे अर्थों की संवाहक हैं। दृश्यात्मकता इन कविताओं की विशिष्टता है। इन कविताओं का मासूम शरारतीपन भी पाठकों के मन को गहराई से बांधता है, जैसे—

‘आपके होठों का आकार धनुष जैसा है/ इसलिए लफ़्ज़ों के ये तीर चलते हैं।’

पुस्तक : मैं अक्सर सोचता हूं कवि : नीलेश मिसरा प्रकाशक : ईका, नयी दिल्ली पृष्ठ : 103 मूल्य :रु. 399 .

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