मनोज कुमार ‘प्रीत’
काव्य-जगत में डॉ. तेजिन्द्र का एक खास स्थान है। उनकी कोमल भावनाएं और चिंतनशील प्रवृत्ति, उनकी कविताओं को एक विशेष गहराई प्रदान करती हैं। इस संग्रह में संकलित कविताएं मानवीय स्वार्थ को उजागर करती हैं, जिसमें मानव ने अपने लोभ और व्यावसायिक लालच के चलते स्वयं के पांवों पर कुल्हाड़ी मारी है।
बाढ़, भूस्खलन, जंगलों में आग, दरकते पर्वत, घटती हरियाली, दूषित वायु, विषैला जल, विलुप्त होते पक्षी और विषाक्त अनाज—इन विषयों को कवि ने अत्यंत संवेदनशीलता के साथ अपनी कविताओं में चित्रित किया है। इसमें एक वेदना है, एक विलाप है, मानवता पर गहरी चोट है और आने वाले युग की स्थिति पर गहन चिंता प्रकट की गई है। यदि अब भी हमने चेतना नहीं दिखाई, तो भविष्य निश्चित ही अंधकारमय होगा।
कवि की पीड़ा प्रकृति के लिए है और वह बार-बार मानव को सावधान करते हैं।
प्रयोगधर्मी वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रूपदेव गुण, जो लघुकविता के जनक माने जाते हैं, की प्रेरणा में प्रत्येक कविता को मात्र दस पंक्तियों में कहने का नया प्रयोग, एक सफल नवाचार के रूप में देखा जा सकता है। इस काव्य-विधा में रची गई सभी कविताएं कवि की सशक्त अभिव्यक्ति हैं।
बर्फीले तूफान, बादलों का फटना, उफनती नदियां, सूखते जलस्रोत, प्राकृतिक आपदाओं की झड़ी, असह्य गर्मी, गरीबों की करुण पुकार और मानवीय क्रूरता—इन सभी विषयों को समेटे यह संग्रह ‘प्रकृति नाराज़ है’ काव्य-जगत में अपना एक विशिष्ट बना सकती है। हमें इससे न केवल सीख लेनी चाहिए, बल्कि समय रहते चेतना भी चाहिए।
पुस्तक : प्रकृति नाराज़ है कवि : डॉ. तेजिन्द्र प्रकाशक : आनन्द कला मंच, भिवानी पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 300.