पेशे से दंत-चिकित्सक, परंतु विरासत में मिले हिंदी साहित्य के प्रति पठन-पाठन, चिंतन और लेखन में गहरी रुचि रखने वाले डॉ. विमल कालिया ‘विमल’ का चौथा कथा-संग्रह ‘हां, मैं औरत व अन्य कहानियां’, जो कहा नहीं गया, वह कहानी सरीखी हैं—जो संग्रह की पहली कहानी भी है। आसपास जो घटा, जो देखा, उसे गहराई से महसूस किया और संवेदना ने उसे प्रभावशाली कहानी में ढाल दिया। इनमें कुछ लघुकथाएं हैं, कुछ निबंधात्मक, और कुछ आत्मकथात्मक स्पर्श लिए हुए हैं।
‘किसके लिए?’—अपने शीर्षकानुसार एक पक्ष पर केंद्रित है, परंतु उसका दूसरा पक्ष पृष्ठभूमि में स्वतः उभर आता है। पांच दोस्तों में एक, वरुण, पैसे से पैसा बनाने की कला में निपुण है और वह फिक्स्ड डिपॉज़िट, शेयर, म्यूचुअल फंड आदि में निवेश कर अपनी पूंजी बढ़ाता चला जाता है। अंत में उसकी मृत्यु पर यह प्रश्न खड़ा किया गया है कि इतना धन-संचय किस काम का, जबकि अव्यक्त सच्चाई यह है कि धन के सही निवेश के कारण ही वह सुविधा-संपन्न जीवन जीता है और अपने बेटे को भी विदेश भेजने में सफल रहता है। उसके दोस्त चाहते तो उसकी निवेश करने की प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए अपना भविष्य भी संवार सकते थे — जैसा कि उन्होंने किया नहीं।
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ का कथन है—‘पैसा कमाइए, पूरा देश आपको अच्छा व्यक्ति कहने की साजिश रचेगा।’ बुज़ुर्गों की दूरदर्शिता को ‘आम का पेड़’ में बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया गया है। सच्चाई यही है कि वर्तमान पीढ़ी को उनकी दूरगामी सोच—जो पहले बेकार लगती है—अंततः उसी में सार नज़र आने लगता है।
संग्रह की कई कहानियां महिलाओं की भावनाओं, विचारों, संघर्षों और अनुभवों पर केंद्रित हैं, जैसे रुका हुआ सैलाब, मैं क्या करती..., नव-अवतार, डायरी, हां, मैं औरत, नशाखोर-नशेड़ी, कौन हूं मैं, मां नहीं रहीं। स्त्री-पुरुष संबंधों की पड़ताल करती कहानियां — तीन तलाक, तुम्हारी ईमेल, ब्रेक-अप या ब्रेकडाउन, अधूरा रिश्ता—विचारणीय, प्रासंगिक और विमर्श योग्य बन पड़ी हैं।
पुस्तक : हां, मैं औरत व अन्य कहानियां लेखक : डॉ. विमल कालिया ‘विमल’ प्रकाशक : सृष्टि प्रकाशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 82 मूल्य : रु. 165.