Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

वक़्त के साथ छूटे लेखक का पुनः स्मरण

पुस्तक समीक्षा
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

डॉ. चन्द्र त्रिखा

मोहन चोपड़ा का विस्मरण एक साहित्यिक अपराध-सा प्रतीत होता है—कुछ-कुछ वैसा ही अपराध, जैसा कालांतर में सत्यपाल आनंद और स्वदेश दीपक के साथ भी महसूस हुआ था। यदि इस विषय को थोड़ा और विस्तार दिया जाए तो राकेश वत्स भी उसी श्रेणी में आते हैं।

Advertisement

वर्ष 1966–67 में उनसे कुछ अवसरों पर भेंट और संवाद हुआ। तब भी यह महसूस हुआ था कि समय से संवाद कर पाने वाले इस लेखक को जो सम्मान और ‘स्पेस’ मिलना चाहिए था, वह किसी कारणवश नहीं मिल पाया।

शायद साठोत्तरी साहित्य के वे एकमात्र ऐसे रचनाकार थे जिनकी रचनाओं पर आधारित ‘मोहन चोपड़ा ग्रंथावली’ सात खंडों में प्रकाशित हुई।

अपने समय में सारिका, कल्पना, धर्मयुग, नई कहानियां और कहानी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में जिन चंद कहानीकारों को विशेष सम्मान और स्थान मिला, उनमें स्वदेश दीपक के साथ-साथ मोहन चोपड़ा का नाम भी सम्मिलित है।

डॉ. सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखे गए ‘मोनोग्राफ’ को भी इसी कालखंड का एक मूल्यवान साहित्यिक दस्तावेज़ माना जाना चाहिए। वैसे डॉ. रस्तोगी की अपनी साहित्य-साधना भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है, परंतु उन पर एक समर्पित और शोधपरक मोनोग्राफ की अनुपस्थिति खटकती है।

इस ग्रंथ में समीक्षक डॉ. रस्तोगी ने मोहन चोपड़ा के व्यक्तित्व, कृतित्व और साहित्यिक अवदान को एक शोधपरक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।

उन्होंने अपनी समीक्षा दृष्टि को केवल कहानियों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि मोहन चोपड़ा के यात्रा-वृत्तांतों पर भी प्रकाश डाला है। इसके अतिरिक्त, कुछ अंतरंग संवादों का उल्लेख करके इस बहुआयामी लेखक के जीवन और रचनात्मकता के उन पहलुओं को भी उजागर किया है जो अब तक कम चर्चित रहे हैं।

डॉ. रस्तोगी के अनुसार, ये कहानियां ‘ज़िंदगी की परिक्रमा करती हैं’ और साथ ही मध्यम वर्ग की जीवनशैली तथा चिंतनशैली को भी स्पष्ट रूप से उभारती हैं।

यह भी एक रोचक संयोग है कि मोहन चोपड़ा और स्वदेश दीपक दोनों ने नाटक के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

डॉ. सुभाष रस्तोगी के प्रति इसलिए भी कृतज्ञता ज्ञापन आवश्यक है कि उनके माध्यम से उत्तर भारतीय साहित्यकारों के कई महत्वपूर्ण पक्ष सामने आए हैं।

इस कृति में डॉ. रस्तोगी ने मोहन चोपड़ा के उस साहित्यिक पक्ष को भी रेखांकित किया है, जो अब तक उपेक्षित रहा है—जैसे वे लगभग तीस कहानियां, जो ग्रंथावली में स्थान नहीं पा सकीं। यदि उनका भी समावेश होता, तो यह कार्य और भी समग्र हो जाता।

पुस्तक : हरियाणा हिंदी साहित्य के निर्माता – मोहन चोपड़ा (मोनोग्राफ) लेखन एवं प्रस्तुति : डॉ. सुभाष रस्तोगी प्रकाशक : सूर्य भारती, प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 101 मूल्य : रु. 495.

Advertisement
×