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अनमोल उपहार

कहानी
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प्रिया ने उनकी ओर देखा, दोनों बच्चे हंस रहे थे। प्रिया भाव-विह्वल हो उठी। मातृत्व जाग उठा। वह दोनों बच्चों को हृदय से लगाकर बोली, ‘हां, ये मेरी जिंदगी के अनमोल उपहार हैं। मैं अपनी सारी जिंदगी इनके सहारे गुज़ार दूंगी।’

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पूजा गुप्ता

कमला देवी विकास के सिरहाने बैठकर बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरने लगीं। उनकी आंखें विकास के मुरझाए चेहरे से चिपक गईं और उनमें से मातृत्व का झरना झर-झर बहने लगा। विकास ने मां का ममतामयी स्पर्श पाकर आहिस्ते से आंखें खोलीं।

मां का करुणामय चेहरा दिखाई दिया। क्षणभर मां के चेहरे को देखने के बाद विकास की आंखों में पीड़ा उमड़ आई। उस पीड़ा में कई प्रश्न झिलमिलाने लगे, जो होंठों पर आकर ऐसे लौट जाया करते जैसे कोई नन्हा-सा बालक बैठने के प्रयास में गिर जाया करता हो। पुत्र की मनोदशा पर मां के हृदय में शूल चुभ रहे थे। बड़ी कठोरता से मां अपने को संभाले थी। लेकिन पानी की भयंकर लहरें बांध पर धक्के दे रही थीं। बांध टूटेगा कि रहेगा, पता नहीं।

‘कब आई मां?’ विकास ने शुष्क स्वर में पूछा।

‘अभी आई हूं, बेटा।’ मां की आवाज़ में नमी थी।

‘प्रिया कैसी है मां?’

‘वह तो ठीक है, परन्तु तुम्हारी चिंता उसे खाए जा रही है।’

‘मां, उसे समझाओ। मेरी चिंता न करे। अपने शरीर पर ध्यान रखे, तनाव से मुक्त रहे... मां, तुम्हें तो सब पता है औरत की मानसिक और शारीरिक स्थितियों का प्रभाव होने वाले बच्चों पर भी पड़ता है... मां, देखना, इस बार लड़का होगा। मैंने उसका नाम भी सोच रखा है... अर्णव! अनन्या का भाई अर्णव। विकास का बेटा अर्णव। तुम्हारा पोता अर्णव। नाम अच्छा है न मां?’ विकास हांफने लगा।

‘हां बेटा, बहुत अच्छा नाम है।’

‘मां, तुम प्रिया को समझाओ, वह मेरी चिंता छोड़ दे।’

‘मैं तुमको समझाऊं या उस पगली को। उसके पास जाती हूं तो वह कहती है, ‘मां, मैं बीमार नहीं हूं। मां बनने वाली हूं। औरत के जीवन की यह महान उपलब्धि है। एक महान पुरस्कार है यह। यह पुरस्कार तब अच्छा लगेगा मां, जब पुरस्कृत करने वाला पति सूर्य के समान चमकता रहे और मैं उनके प्रकाश में अपने जीवन और पुरस्कार पर इठलाती रहूं... मां, वे हैं तो मैं हूं। उनका जीवन मेरा जीवन है। उनका दुःख, मेरा दुःख, उनकी खुशी, मेरी खुशी, उनकी उपस्थिति, मेरा आलंबन। आपको क्या समझाऊं मां, आप तो स्वयं एक नारी हैं। नारी के जीवन में पति का क्या स्थान है, आप खूब समझती हैं। जाइए मां, उनके पास रहिए। मेरे पास तो अस्पताल की नर्सें हैं। वे दूसरी बार मां बनने जा रही हैं। कुछ अनुभव भी हैं आपके पास...

‘अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं! किसको समझाऊं? किसके पास रहूं?’

‘मां, तुम बहुत भोली हो। प्रिया ने जैसा समझा दिया, तुमने वैसा मान लिया। मां, तुम जानती नहीं, सरकारी अस्पताल की नर्सें कितनी लापरवाह होती हैं। उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता... मैं बीमार हूं, उसको बीमार बनाने से क्या फायदा? वह तो ऐसे ही बहुत कमजोर है। अनन्या के जन्म के समय कैसे मौत के मुख से बची थी।’ विकास फिर हांफने लगा। बीच-बीच में खांसी भी आने लगी। हृदय की गति बढ़ गई। कमला देवी बेचैन हो गईं। विकास ने हाथ से इशारा किया कि घबराने की कोई बात नहीं है, ऐसा तो होता ही रहता है। यही तो बीमारी है। क्या कर सकते हैं। इलाज तो चल ही रहा है।

जब कुछ राहत महसूस हुई तो बोला, ‘मां, तुम प्रिया के पास जाओ। अपने इस लाचार बेटे की बात मानो मां! तुमने मेरी हर बात को माना है। मेरे हर आग्रह को सहर्ष स्वीकार किया है। मेरी हर जिद को पूरा किया है। इस बार भी पूरा कर दो, मां।’ विकास ने कमला देवी की ओर इस तरह देखा जैसे कोई भिखारी दाता की ओर देखता है।

कमला देवी सोचने लगीं, ‘किसको अपनी स्नेह की छाया में रखें? किसको अपने स्नेहिल स्पर्श से सहलाएं? किसको धीरज बंधाएं? किसको मातृत्व की संजीवनी घुट्टी पिलाएं? हाय! दोनों ने मुझे टाल दिया।’

फिर सोचने लगीं, ‘आहा! कितना प्यार है दोनों में। कितनी समर्पण की भावना है एक-दूसरे के प्रति। अपनी चिंता नहीं, जीवन साथी की चिंता है। हे ईश्वर! इन दोनों की रक्षा करना।’

कमला देवी दृढ़ इरादे के साथ प्रिया के पास चल दीं। उन्होंने मन-ही-मन कहा, ‘अब मैं प्रिया के पास से नहीं हटूंगी। चाहे वह मुझे कितना ही विकास के पास जाने के लिए क्यों न कहे। विकास के जीवन की डोर तो उसके पास है।’

कमला देवी जब प्रिया के वार्ड में पहुंची तो पता चला, प्रिया प्रसूति गृह में है। उसने एक पुत्र को जन्म दिया है। माता और पुत्र दोनों स्वस्थ हैं। सभी कार्य सामान्य तरीके से संपन्न हो गए।

कमला देवी के चिंतित चेहरे पर खुशी की आभा दौड़ गई। वह कुछ क्षण के लिए भूल गईं कि उनका पुत्र एक खतरनाक बीमारी के चंगुल में है। सुस्ती उनके शरीर से निकल भागी। वह चंचल हो उठीं। उनकी चिर संचित अभिलाषा पूरी हो गई थी। वह पोते को देखने के लिए बेचैन हो उठीं।

प्रिया को प्रसूति गृह से निकालकर नवजात शिशु के साथ उसके वार्ड के बेड पर लाया गया। कमला देवी पोते को देखकर निहाल हो गईं। फिर उन्होंने गौर से पोते के चेहरे का निरीक्षण किया। वहां विकास की सूरत झलक पड़ी। फिर विकास का पीला चेहरा, धंसी आंखें उस शिशु के चेहरे में दिखाई देने लगीं। अपने पुत्र की दशा का आभास होते ही कमला देवी का चेहरा उदास हो गया। प्रिया बोली, ‘वे कैसे हैं मां?’

‘वैसा ही है बहू, जैसा था। कुछ सुधार नहीं हुआ है।’

‘मुझे ले चलो मां, मैं उनके पास रहना चाहती हूं।’

‘अभी तुम बहुत कमजोर हो। जरा धीरज रखो।’

‘नहीं मां, मैं अभी चलूंगी। अब एक पल भी उनसे दूर नहीं रह सकती।’

प्रिया ने जिद पकड़ ली। डॉक्टर से अनुनय-विनय करके इजाजत ले ली गई। कमला देवी शिशु को गोद में लिए और एक हाथ से प्रिया को सहारा देते हुए, विकास के पास चल पड़ीं। साथ में एक नर्स भी थी। विकास और प्रिया की शादी को तीन वर्ष ही हुए थे। विकास इंजीनियर था और प्रिया एक पढ़ी-लिखी कुशल गृहिणी। बड़ी अच्छी जोड़ी थी।

शादी के एक वर्ष बाद प्रिया ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया। पति-पत्नी ने मिलकर उसका नाम अनन्या रखा। अनन्या से घर-आंगन महक उठा। कमला देवी दादी बन चुकी थीं। लेकिन पोते की दादी बनने की अभिलाषा अभी पूरी नहीं हुई थी। जो कभी-कभी उनके होंठों पर अनायास ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आ जाया करती थी। विकास और प्रिया भी पुत्र वाली मानसिकता से अछूते नहीं थे।

अनन्या के दो वर्ष पूरे करते ही प्रिया फिर से मां बनने वाली थी। मां बनने में दस-बारह दिन बाकी थे कि विकास फेफड़े की एक भयंकर बीमारी के चंगुल में फंस गए। विकास को एक सरकारी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। प्रिया और कमला देवी विकास के साथ अस्पताल में रहने लगे। विकास की हालत डॉक्टरों के इलाज के बावजूद दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगी। कुछ दिन बाद उसी अस्पताल के महिला वार्ड में प्रिया को भी भर्ती होना पड़ा, जहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

प्रिया ने जब विकास को देखा तो उसका कलेजा कांप गया। पुत्ररत्न की प्राप्ति तो हो चुकी थी, परन्तु सुहाग खतरे में नजर आया। क्या ये वही विकास हैं, जिनके चेहरे पर प्रसन्नता की लहरें हमेशा दौड़ा करती थीं, आज वह कहां चली गई है? इनकी सूरत में कितना परिवर्तन हो गया है। वह चमकता ललाट, वे चंचल आंखें, वह सुडौल शरीर कहां चला गया? केवल शरीर के रूप में हड्डियों का ढांचा ही रह गया है। उसका अंतःकरण रो उठा, ‘हाय! मेरे पति की ऐसी दशा।’

विकास, प्रिया को देखकर मुस्कराए, लेकिन वह मुस्कराहट नहीं थी। उसमें विवशता, दीनता और पीड़ा की झलक थी।

‘बेटा हुआ है, बेटा।’ कमला देवी विकास से बोलीं और गोद में रखे नवजात शिशु को उसके सामने कर दिया।

‘मैंने कहा था न मां कि बेटा ही होगा, प्रिया ने मेरी इच्छा पूरी कर दी।’ इतना बोलकर विकास खांसने लगा।

प्रिया को जैसे सांप सूंघ गया था। वह ठगी-सी खड़ी थी। विकास की खांसी जब रुकी तो उन्होंने अपनी दोनों निर्बल बाहें शिशु की ओर फैला दीं। कमला देवी ने शिशु को उनकी बांहों में दे दिया। शिशु नींद में था। ‘इसका नाम अर्णव रहेगा। मैंने इसका नामकरण कर दिया है।’

विकास प्रिया की ओर देखकर बोला, ‘प्रिया, तुमने मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर दी।’ विकास जोर-जोर से हांफने लगा।

प्रिया मानो नींद से जागी। वह बोली, ‘आप ठीक हो जाएंगे।’ बस, इतना ही बोल पाई। विकास के हाथ कांपने लगे। सांसें तेज चलने लगीं और खांसी भी आने लगी। विकास ने शिशु को प्रिया की ओर बढ़ा दिया। लगता था शिशु उसके हाथों से छूट जाएगा।

प्रिया ने अपने हाथ बढ़ाए। दोनों के हाथ परस्पर छू गए। एक अजीब-सी अनुभूति उन दोनों के शरीर में हुई। शिशु प्रिया की बांहों में आ गया। कमला देवी डॉक्टर को बुलाने दौड़ पड़ीं। प्रिया की ओर देखते-देखते विकास के प्राण पखेरू उड़ गए।

प्रिया का सूर्य हमेशा के लिए उसकी आंखों के सामने अस्त हो गया। उपवन में दो फूल खिलाकर माली उपवन छोड़ चला। उपवन उजड़ गया, फूल अनाथ हो गए। प्रिया विलाप करने लगी। हृदय को दहला देने वाला दृश्य था। कमला देवी डॉक्टर को लेकर आईं। विलाप और तेज हो गया। प्रिया कमला देवी के पैरों से लिपटकर रोने लगी। कमला देवी अपना होश-हवास खो बैठीं। डॉक्टर ने विकास को मृत घोषित कर दिया।

दिन बीते, महीने बीते, वर्ष बीते। प्रिया की सास कमला देवी भी चल बसीं। ससुराल के अन्य सदस्यों की नजरों में प्रिया अब खटकने लगी। वह ससुराल से मायके आ गई। पर उसकी स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही। पिता ने समझाया, ‘प्रिया, ऐसा कब तक चलेगा? अभी पूरी जिंदगी पड़ी है। अपने भविष्य के बारे में सोचो। अपने बच्चों के बारे में सोचो।’

प्रिया जब अपने पिता की ओर देखती तो वे उसकी आंखों में खामोशियों को देखकर निरुत्तर हो जाते। वे एकांत कोठरी में बैठकर घंटों रोते। फिर दोबारा हिम्मत नहीं होती कि कुछ कहें या समझाएं।

कुछ सगे-संबंधियों ने प्रिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, ‘अभी उम्र ही क्या है? मात्र तेईस वर्ष। दूसरी शादी कर लो। आगे की जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।’ लेकिन बच्चे कहीं उपेक्षित न पड़ जाएं, यह सोचकर प्रिया ने साफ इनकार कर दिया।

शादी का प्रस्ताव जब प्रिया द्वारा ठुकरा दिया गया तो कुछ लोगों ने उसके पिता से कहा, ‘उसे पूजा-पाठ में लगा दीजिए।’ इस प्रस्ताव को प्रिया के पिता ने साफ इनकार करते हुए कहा, ‘मैं अपनी बेटी को साध्वी नहीं बनने दूंगा। वह विधवा है तो क्या हुआ। उसे भी एक आम जिंदगी जीने का हक है।’

प्रिया हमेशा शून्य में खोई रहती। उसे बच्चों का अहसास था परन्तु उनसे लगाव नहीं रहता था।

एक दिन प्रिया के चाचा ने बड़ी भावुकता से समझाया, ‘बेटी, कल्पना करो, मैं तुमको मेला घुमाने ले गया हूं। वहां पर हमारी मुलाकात एक अनजान आदमी से होती है, जो बाद में अपना हो जाता है। मैं तुमको उसके साथ लगा देता हूं। वह तुझे मेला घुमाने लगता है। नई-नई चीजें दिखाता है। नई-नई बातें बताता है। तुम उसके साथ बहुत खुश रहती हो। वह तुम्हारा बहुत ध्यान रखता है। तुम्हारी हर इच्छा को पूरा करता है। जो चाहती हो, खरीदता है, जो खाना चाहती हो खिलाता है। तुम भी उसे बहुत चाहती हो। तुम्हारी इच्छा रहती है कि उसका साथ हमेशा बना रहे। लेकिन बेटी, वह आदमी तुम्हें छोड़कर चला गया... बहुत दूर। परंतु जाते समय तुम्हारे आंचल में दो ‘अनमोल उपहार’ रख गया, तुम्हारा मन बहलाने के लिए। बेटी, इन अनमोल उपहारों के साथ तुम खेलो, अपना मन बहलाओ। तुम्हारी जिंदगी अच्छी तरह से गुजर जाएगी। ये अनमोल खिलौने उसके प्यार की निशानी हैं। इन्हें संभालो।’

चाचा की बातों का असर प्रिया पर हुआ। उसके दोनों बच्चे, अनन्या और अर्णव उसके पास ही खड़े थे। प्रिया ने उनकी ओर देखा, दोनों बच्चे हंस रहे थे। प्रिया भाव-विह्वल हो उठी। मातृत्व जाग उठा। वह दोनों बच्चों को हृदय से लगाकर बोली, ‘हां, ये मेरी जिंदगी के अनमोल उपहार हैं। मैं अपनी सारी जिंदगी इनके सहारे गुज़ार दूंगी।’ प्रिया के चाचा अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए। परन्तु ये आंसू प्रिया के लौटने की खुशी में बह रहे थे।

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