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कटुतम अनुभवों का आईना दिखाती कविता

पुस्तक समीक्षा
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अशोक कुमार पांडेय मुख्यतः कश्मीर के इतिहास, समकाल और भारत के आधुनिक इतिहास के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई विधाओं में लेखन करने के बाद वह पिछले काफी समय से इतिहास-लेखन में सक्रिय हैं। ‘कश्मीरनामा’, ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’, ‘उसने गांधी को क्यों मारा’, ‘सावरकर : कालापानी और उसके बाद’, ‘राहुल सांकृत्यायन : अनाम बेचैनी का यायावर’ उनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं। अशोक कुमार पांडेय के दो कविता-संग्रह—‘लगभग अनामंत्रित’ और ‘प्रलय में लय’ पहले से ही उपलब्ध हैं। उनके सद्यः प्रकाशित तीसरे कविता-संग्रह ‘आवाज़-बेआवाज़’ में कुल 47 कविताएं संगृहीत हैं, जो अपने समवेत पाठ में मानवीय संवेदना और राजनीतिक सरोकारों का एक वृहत्तर बिंब प्रस्तुत करती हैं। ‘आवाज़-बेआवाज़’ की कविताएं राजनीति की मौजूदा भंगिमाओं के ऐन मुहाने पर वार करती हैं, और मौजूदा समय की भयावहता को समझने के लिए एक वाक्य ही काफी है, क्योंकि—‘आवाज़ें पहले से रिकॉर्ड हैं।’

‘हंसो मत’ कविता की ये पंक्तियां व्यंजनात्मक अर्थ में अत्यंत गहरी हैं, जो पाठक की चेतना में तीव्र उद्वेलन पैदा करती हैं—

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‘हंसो मत/ जब वह कहे देश—तान लो मुट्ठियां/ वह संकट कहे—पसार दो हथेली/ वह बोलने को कहे तो मुंह खोलो बस/ आवाज़ें रिकॉर्ड हैं/ पहले से ही।’

कवि के इस संग्रह की कविताओं की यह खासियत है कि ये दुनिया के हर उस कोने तक पहुंचती हैं, जहां मनुष्यता संकट में है। इस दृष्टि से कवि की ‘फलस्तीन’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियां काबिलेगौर हैं—

‘उसने कहा/ गर जाना चाहिए इन सबको/ गज़ा पर गिरना चाहिए परमाणु बम/ वेस्ट बैंक के लिए मशीनगनें काफी हैं।

इतने सोए मुल्क हैं दुनिया में/ चले जाएं थोड़े-थोड़े हर मुल्क में/ जानवर ही तो हैं/ दो हाथ-दो पैरों वाले।’

सवाल यह भी है कि स्वयंभू तानाशाही को कितनी ज़मीन चाहिए? जानें कवि से ही—

‘उतनी कि जिसके बाद किसी के पास न बचे ज़मीन।’

कवि का यह सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘आवाज़-बेआवाज़’ तीन खंडों—‘दुनिया’, ‘तुम’ और ‘कमबख्त’—में विभाजित है। ‘तुम’ खंड में कवि की 15 बेहतरीन प्रेम कविताएं संग्रहीत हैं। जानें कवि से ही—

‘रोज़ सात बार डूबता हूं तुम्हारे प्रेम में/ उतराने की कोशिश किसी आदत-सी होती है/ डूबने की परिणति भी वैसी ही आदत-सी।’

तीसरे खंड ‘कमबख्त’ में ज़्यादातर लंबी कविताएं हैं, जो अलग-अलग चरणों में विभाजित हैं। पंद्रह चरणों में विभाजित ‘कवि का एकालाप’ कविता में कवि का मानना है—

‘पाठक होना मनुष्य होना है/ कवि होना संकटग्रस्त मनुष्य होना है।’

समग्रतः अशोक कुमार पांडेय के सद्यः प्रकाशित कविता-संग्रह ‘आवाज़-बेआवाज़’ की कविताएं प्रेम की विरल अनुभूतियों से लेकर जीवन के कटुतम यथार्थ का आईना बनकर सामने आती हैं। छोटे-छोटे शब्द-बिंबों से जीवन का बड़ा बिंब खड़ा करने में कवि को महारत हासिल है।

पुस्तक : आवाज़-बेआवाज़ कवि : अशोक कुमार पांडेय प्रकाशक : राजप्रकाशन प्रा.लि., नयी दिल्ली पृष्ठ : 143 मूल्य : रु. 250.

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