रवनीत कौर
सी. मारकंडा पंजाबी भाषा के एक जाने-माने शायर हैं। इससे पहले उनके पांच काव्य संग्रह ‘सूरज दा जनम’, ‘मैं दसांगा’, ‘इंज वी होणा सी’, ‘अजकल’ और ‘त्रै-काल’, चार सफरनामे, एक शब्द-चित्र, दो आलोचना, एक अभिनंदन ग्रंथ, दो अनुवाद और एक संपादित पुस्तक पाठकों से रूबरू करा चुके हैं। उनकी नई किताब ‘तली दी अग्ग’ एक खंड काव्य है।
दरअसल, खंडकाव्य विधा में विशिष्ट विषय केंद्रित काव्य रचा जाता है। वैसे तो संस्कृति आचार्यों ने खंडकाव्य को महाकाव्य जितना महत्वपूर्ण तो नहीं माना। इसी कारणवश इसकी चर्चा कम हुई। एक विद्वान डॉ. गोविद त्रिगनायत के अनुसार खंड काव्य प्रभावशाली होना चाहिए, जो जलधारा के समान प्रवाहित होने का आभास दे। इसका एक लक्ष्य व एक विषय होना अनिवार्य है। इसे कहानी जैसी रवानगी वाली विधा भी माना जा सकता है।
निस्संदेह, सी. मारकंडा की यह किताब इन सभी आकांक्षाओं के करीब है। कवि ने इस पुस्तक में इतिहास, मिथिहास, कल्पना व प्रेम के भावों को रचना में सम्मिलित किया है। प्रेम को ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ मानकर उन्होंने कामदेव-रति, युवती-शहजादा, पूरन-सुंदरा, राधा-कृष्ण की कालजयी प्रेम कथाओं के माध्यम से अपनी बात को सुंदर शब्दों में प्रकट किया है। इस पुस्तक में सम्मिलित काव्य रचनाएं कवि ने 1970 के आसपास लिखनी शुरू की, पर काफी लंबा समय इस रचना को पूर्णता प्रदान करने में लगा। अंतत: काफी कशमकश के बाद यह पुस्तक पाठकों के सामने आई। आधुनिक पंजाबी साहित्य में भाई वीर सिंह, अमृता प्रीतम, प्रो. मोहन सिंह, शिव कुमार बटालवी और कई अन्य साहित्यकारों ने खंड काव्य लिखे। अब सी. मारकंडा उसी दिशा में आगे बढ़े हैं।
पुस्तक : तली दी अग्ग कवि : सी. मारकंडा प्रकाशक : संगम पब्लिकेशंस, पटियाला पृष्ठ : 87 मूल्य : रु. 150.