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अश्वघोष की याद में

पत्रिकाएं मिलीं
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अरुण नैथानी

यूं तो आजकल महंगी होती मुद्रण लागत के कारण साहित्यिक पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन मुश्किल है, लेकिन गुणवत्ता को कायम रखना उससे भी बड़ी चुनौती है। सहारनपुर में डॉ. वीरेंद्र आजम लगातार पठनीय और संग्रहणीय ‘शीतल वाणी’ का प्रकाशन कर रहे हैं। समीक्ष्य मार्च अंक बहुआयामी सृजनात्मकता के धनी अश्वघोष की स्मृति में प्रकाशित किया गया है। नामवर सिंह ने पांच समकालीन ग़ज़लकारों में उन्हें भी शामिल किया था। इस अंक में आलेख, संस्मरण, काव्यलोक, समीक्षा और कहानी के स्तंभों के साथ-साथ अश्वघोष का लंबा साक्षात्कार भी शामिल है।

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पत्रिका : शीतल वाणी संपादक : डॉ. वीरेन्द्र ’आजम’ प्रकाशक : मीनाक्षी सैनी, अंबाला रोड, सहारनपुर पृष्ठ : 72 मूल्य : रु. 50.

सृजन सरोकारों की प्रतिबद्धता

यूं तो ‘हिमप्रस्थ’ सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, हिमाचल प्रदेश की पत्रिका है, लेकिन साहित्य के सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता बरकरार है। अंक देर से प्रकाशित होने के बावजूद पाठकों को इसका इंतजार रहता है। थोड़ी-बहुत सरकारी प्रतिबद्धताओं के बावजूद पत्रिका के समीक्ष्य अंक में लेख, शोध रचनाएं, कविता, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य और समीक्षा के नियमित स्तंभों में पठनीय रचनाएं शामिल हैं। शोध लेखों में सिरमौर के पौराणिक गीत, गोंड जनजाति की सांस्कृतिक विरासत, गुज्जर समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर आदि पठनीय हैं।

पत्रिका : हिमप्रस्थ संपादक : योगराज शर्मा प्रकाशक : निदेशक,सूचना जनसंपर्क विभाग, हिमाचल पृष्ठ : 60 मूल्य : रु. 15.

‘नारी ही नारायणी’ की सोच

हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की पत्रिका ‘हरिगंधा’ का मार्च अंक महिला विशेषांक है। निदेशक डॉ. धर्मदेव के निर्देशन में प्रकाशित समीक्ष्य अंक में हरियाणा के लोक-साहित्य में महिलाएं, कथा-उपन्यास में स्त्री, पाकशाला से प्रयोगशाला तक, कैप्टन विजय लक्ष्मी सहगल, स्वतंत्रता संग्राम में नारी अस्तित्व आदि पठनीय रचनाएं संकलित हैं। इसके अलावा कहानी, काव्य और पुस्तक चर्चा आदि स्थायी स्तंभ भी हैं। अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री की रचना ‘निर्मला पंथ का दर्शन शास्त्र’ पठनीय है।

पत्रिका : हरिगंधा संपादक : मुकेश लता प्रकाशक : हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला पृष्ठ : 100 मूल्य : रु. 15.

तारिका का लुघकथा विशेषांक

यह सुखद है कि स्व. डॉ. महाराज कृष्ण जैन द्वारा लगाया गया ‘शुभ तारिका’ का पौधा तमाम चुनौतियों के बावजूद निरंतर महक रहा है। श्रीमती उर्मि कृष्ण के निर्देशन और विजय कुमार के संपादन में पत्रिका का समीक्ष्य अंक लघुकथा विशेषांक है। अंक में क्षेत्र के नए-पुराने लघुकथाकारों की रचनाएं संकलित हैं। रचनाकारों के चित्र और पते के साथ रचनाओं को सम्मानपूर्वक प्रकाशित किया गया है। अंक में स्थायी स्तंभ पत्रम‍्-पुष्पम‍्, सबरंग, लल्लूनामा, पत्र-पत्रिकाएं और पुस्तकें भी शामिल हैं। अंक पठनीय है।

पत्रिका : शुभ तारिका संपादक : उर्मि कृष्ण प्रकाशक : कृष्णदीप, शास्त्री कालोनी, अंबाला छावनी पृष्ठ : 46 मूल्य : रु. 15.

कुश्ती साहित्य की बानगी

यह सुखद है कि हिंदी और कुश्ती साहित्य को समृद्ध करने की जो कोशिश 62 साल पहले की गई थी, वह निरंतर समृद्ध होती रही है। निश्चय ही महंगाई के चलते किसी पत्रिका का छह दशक तक निरंतर प्रकाशन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन रामचंद्र केसरिया और उनकी टीम के प्रयासों से कुश्ती प्रेमियों के लिए इसका प्रकाशन निरंतर जारी है। दादा रतन पाटोदी का यह कथन ‘जब तक पत्रिका निकलती रहेगी, हम जिंदा रहेंगे’ प्रेरक है। अंक पठनीय है।

पत्रिका : भारतीय कुश्ती संपादक : रामचंद्र केसरिया प्रकाशक : भारतीय कुश्ती, रंगमहल, इंदौर, म.प्र. पृष्ठ : 20 मूल्य : रु. 20.

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