योगेंद्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
आदिकवि वाल्मीकि से लेकर आज तक रामकथा को लेकर जितने भी ग्रंथ रचे गए हैं, उन सबमें एक ऐसे पात्र का उल्लेख अनिवार्यतः हुआ है, जिसने वनवासी राम के अनुज लक्ष्मण की अवश्यम्भावी मृत्यु से प्राण-रक्षा की थी और राम को भ्रातृ-वियोग के शोक-सिंधु से मुक्ति दिलाई थी।
राम-कथा के इस पात्र का नाम है ‘सुषेण’, जो लंकाधिपति रावण का ‘राजवैद्य’ है। इस पात्र को केंद्र में रखकर साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने ‘सुषेण पर्व’ शीर्षक से एक काव्य नाटक की रचना की है, जो चर्चित होने के साथ ही भोपाल की प्रतिष्ठित कोरियोग्राफर वैशाली गुप्ता द्वारा मंचित भी किया गया है। वस्तुतः इस ‘काव्य-नाटक’ में डॉ. दीपक ने जो बात प्रतिपादित की है, वह यह है कि रावण के ‘राजवैद्य’ रहे सुषेण को क्या उन्हीं के शत्रु अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम के अनुज लक्ष्मण का इलाज करना चाहिए था?
इस प्रश्न को सुलझाने में देवेंद्र दीपक ने भारतीय संस्कृति के शाश्वत जीवन-मूल्य ‘परोपकार’ के साथ ही ‘स्व’ से ‘पर’ की महत्ता को स्थापित करते हुए ‘चिकित्सक-धर्म’ को भी एक नए रूप में प्रतिष्ठित किया है और ‘राजवैद्य सुषेण’ को ‘वैद्यराज सुषेण’ बनाकर अमर कर दिया है।
अपने ‘काव्य-नाटक’ में दीपक ने स्वयं श्रीराम के मुख से सुषेण को जो सत्य कहलाया है, वह भारतीय संस्कृति का तत्त्व-दर्शन ही तो है। राम कहते हैं :-
‘सुषेण,
पहले तुम राजवैद्य थे
अब तुम वैद्यराज हो।
सुषेण!
चिकित्सा-सेवा से
रोगी के चेहरे पर लौटी मुस्कान
वैद्य का सौंदर्यशास्त्र है!’
कुल सात दृश्यों में बंधे इस गीति-नाट्य में अपने उद्देश्य को शब्द-साधक देवेंद्र दीपक ने उजागर करते हुए लिखा है-‘एक प्रश्न कौंधा – जो राम गिलहरी के योगदान को रेखांकित करते हैं, वह सुषेण के साथ ऐसा व्यवहार करें कि लक्ष्मण की मूर्च्छा टूटने पर सुषेण के प्रति कृतज्ञता तक न प्रकट करें, ऐसा कैसे हो सकता है।’ और उन्होंने यह अनूठा काव्य-नाटक रच दिया है।
निस्संदेह, यह काव्य-नाटक हिन्दी के गीति-काव्य विधा की अछूती कृति कही जा सकती है, जिसके माध्यम से एक ‘राजवैद्य’ सुषेण को ‘वैद्यराज’ बनाकर साहित्य-साधक देवेंद्र दीपक ने ‘चिकित्सक’ के वैश्विक धर्म को रेखांकित किया है। ‘सुषेण पर्व’ के सातवें दृश्य में ‘राम और सुषेण का वार्तालाप’ लेखक के चिंतन को प्रदर्शित करता है। लक्ष्मण की मूर्च्छा टूटने के बाद कहे गए राम के शब्दों में तो पूरे विश्व के लिए संदेश छिपा हुआ है।
सच यही है कि चिकित्सक का धर्म ‘स्व से उठकर पर’ तक पहुंचना होता है। ‘सुषेण पर्व’ निस्संदेह हिन्दी काव्य- नाटक के क्षेत्र की अनुपम कृति है।
पुस्तक : सुषेण पर्व (काव्य-नाटक) लेखक : डॉ. देवेंद्र दीपक प्रकाशक : इंद्रा पब्लिशिंग हाउस, भोपाल पृष्ठ : 109 मूल्य : रु. 135.