‘शेखर जोशी की कहानियों में लोक जीवन’ डॉ. जय भगवान भारद्वाज ‘नाहड़’ द्वारा लिखा गया एक शोधग्रंथ है, जिसमें उन्होंने शेखर जोशी की कहानियों का गहन और व्यवस्थित ढंग से अवलोकन करते हुए उनमें निहित लोक जीवन के तत्वों को उजागर करने का प्रयास किया है।
वे लिखते हैं कि शेखर जोशी की कहानियों में शोषित, वंचित वर्ग, सैन्य वर्कशॉप, जीवन, मजदूर, कृषक, नारियां एवं ग्रामीण संस्थाओं का यथार्थ चित्रण है। एक सैनिक पृष्ठभूमि से होने के कारण डॉ. जय भगवान भारद्वाज को शेखर जोशी की कहानियां भीतर तक प्रभावित करती हैं।
कुछ कहानियों का उल्लेख उन्होंने अपने शोधग्रंथ में विस्तार से किया है। इस शोधग्रंथ में कुल आठ अध्याय हैं, जिनके माध्यम से शेखर जोशी के परिवेश, जीवन-प्रवेश आदि की चर्चा से लेकर कहानियों में लोक जीवन का विवेचन, कहानियों का सामान्य परिचय, ग्रामीण जीवन, नारी विमर्श एवं दलित विमर्श जैसे विविध पक्षों का गहराई से विश्लेषण किया गया है।
शेखर जोशी की कथा-प्रसंग में बदलते स्वरूप पर भी एक पूर्ण अध्याय डॉ. भारद्वाज ने समर्पित किया है। उन्होंने ‘मेरा पहाड़’, ‘हलवाहा’, ‘डांगरी वाले’, ‘एक पेड़ की याद’, ‘कोसी का घटवार’, ‘नौरंगी बीमार है’ जैसी कहानियों का विशिष्ट रूप से उल्लेख किया है।
गौरतलब है कि डॉ. जय भगवान भारद्वाज ने शेखर जोशी को अंतर्मन से पढ़ा है और उन पर कार्य करते समय वे उनके जीवन एवं साहित्यिक पृष्ठभूमि से गहराई से परिचित हुए हैं।
पांचवें अध्याय ‘शेखर जोशी की कहानियों में नारी विमर्श’ में लेखक ने पारिवारिक संबंध, संयुक्त परिवार का विघटन, मां-बेटे का संबंध, बाल-विवाह, अनमेल विवाह, पति-परायण नारी के साथ-साथ प्रेमी-प्रेमिका के रूप में नारी, सास-बहू संबंध आदि का निरूपण बहुत सुंदर ढंग से किया है। उन्होंने विभिन्न कहानियों के माध्यम से अपनी बात को ठोस प्रमाणों के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
शेखर जोशी की कहानियों में नारी विमर्श के अंतर्गत धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ तीर्थयात्रा का वर्णन भी मिलता है। इसके विभिन्न पक्ष—जैसे राजनीतिक चेतना, समाज सेवा आदि—का उल्लेख भी उन्होंने समग्र रूप में किया है।
इस शोधग्रंथ से गुजरने पर पाठकों को शेखर जोशी की कहानियों में लोक जीवन की सुंदर झलक प्राप्त होती है, और साथ ही लेखक का परिश्रम और गहन अध्ययन भी स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।
पुस्तक : शेखर जोशी की कहानियों में लोक जीवन लेखक : डॉ. जय भगवान भारद्वाज नाहड़ प्रकाशक : पराग प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 198 मूल्य : रु. 395.