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समाज की छुपी परतों की पड़ताल

पुस्तक समीक्षा
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सुदर्शन गासो

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‘ख़ैबर दर्रा’ लेखक पंकज सुबीर द्वारा लिखा गया एक अत्यंत विचारोत्तेजक कथा-संग्रह है। इस संग्रह में लेखक ने समाज के ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिन पर चर्चा करने से हमारा समाज अक्सर कतराता है।

पंकज सुबीर अब तक चार उपन्यास, ग्यारह कहानी-संग्रह, एक ग़ज़ल-संग्रह, एक व्यंग्य-संग्रह और एक लंबी कविता लिख चुके हैं।

इस कथा-संग्रह में कुल नौ कहानियां हैं। सभी कहानियों के विषय और आधार अलग-अलग हैं। लेखक ने प्रत्येक विषय के साथ न्याय किया है। उन्हें कथा कहने की कला में दक्षता प्राप्त है, और पात्रों के मनोविज्ञान को भी वे बख़ूबी चित्रित करने में सफल हुए हैं।

संग्रह की पहली कहानी ‘एक थे मटरू मियां, एक थी रज्जो’ एक विचित्र यथार्थ को प्रस्तुत करती है। यह कहानी मटरू मियां, एक अखबार के जिला ब्यूरो प्रमुख दुर्गादास त्रिपाठी, दामोदर और रज्जो उर्फ़ श्रीमती रजनी परिहार के इर्द-गिर्द घूमती है। ऊपर से देखने पर रज्जो का संबंध दुर्गादास त्रिपाठी से प्रतीत होता है, परंतु लोग उन्हें नपुंसक कहते हैं और रज्जो के जो दो बच्चे होते हैं, वे मटरू मियां जैसे दिखते हैं। रज्जो अपने पहले पति और परिवार को छोड़कर आई एक महिला है, जो अपनी ज़रूरतें पूरी करके वापस भी चली जाती है। इस कहानी में सत्ता और पत्रकारिता के परदे के पीछे की अनेक परतों को बेपर्दा किया गया है।

‘हरे टीन की छत’ कहानी ‘मीरा’ के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने पहले प्रेम की स्मृतियों को संजोए जीवन जी रही है। वह अपने प्रथम प्रेमी से मिलने के लिए चालीस वर्षों बाद अमेरिका से लौटती है, लेकिन तब तक बहुत कुछ बदल चुका होता है। इसीलिए कहा जाता है कि कुछ स्मृतियों को स्मृतियां ही रहने देना चाहिए।

‘ख़ैबर दर्रा’ कहानी शहर में होने वाले सांप्रदायिक दंगों और इंसान के भीतर छिपे हैवान के विषय में प्रकाश डालती है। यह कहानी दिखाती है कि दंगों और नफ़रत की मार से त्रस्त समाज किस प्रकार अंधकारमय राहों पर भटकता रहता है।

‘वीर बहुटियां चली गईं’ कहानी यह संदेश देती है कि एक आस, एक उम्मीद, एक चाहत ही मनुष्य को जीवित रखती है। जब यह आशा समाप्त हो जाती है, तो उसके जीवन का उद्देश्य भी समाप्त हो जाता है।

‘देह धरे का दंड’ और ‘निर्लिंग’ कहानियां किन्नर समाज के ‘अधूरे लोगों’ के जीवन को अत्यंत मार्मिकता से प्रस्तुत करती हैं। कहानियों में बताया गया है कि समाज के कुछ लोग किस तरह से इन लोगों के जीवन को नर्क बना देते हैं। सामाजिक भेदभाव और अमानवीय व्यवहार का चित्रण बहुत प्रभावशाली ढंग से किया गया है।

लेखक ने सामंती समाज में जातिगत बंटवारे, रिश्तों और उन पर हावी पैसे के प्रभाव का भी सजीव वर्णन किया है। समाज के विकृत चेहरे को दिखाती हुई ये साहसी कहानियां पाठकों को बहुत कुछ सोचने के लिए विवश करती हैं।

पुस्तक : ख़ैबर दर्रा लेखक : पंकज सुबीर प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्ज, दिल्ली पृष्ठ : 176 मूल्य : रु. 325.

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