यश गोयल
जानी-मानी साहित्यकार और महिला अधिकारों पर नियमित शोधपरक लेखन में संलग्न निवेदिता मेनन ने 2012 में अंग्रेजी भाषा में ‘सीइंग लाइक ए फेमनिस्ट’ किताब लिखी थी, जिसका हिंदी अनुवाद अब शोध-अध्येता नरेश गोस्वामी ने किया है। मूल इंग्लिश बुक के अनुवाद के साथ इसमें संशोधन-संवर्धन भी किया गया है।
तनिका सरकार, आधुनिक भारत की इतिहासकार, इस किताब के अग्रलेख में कहती हैं ‘निवेदिता अपने बेलाग और दिलचस्प लेखन से, नारीवादी सिद्धांतों की बेहद जटिल अवधारणाओं और व्यावहारिक प्रयोगों को परस्पर जोड़ती हैं। वे बृहत्तर सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रियाओं की समृद्ध समझ के दायरे में बहस खड़ी करती हैं और इन दोनों के साझे धरातल को सामने लाती हैं।’
अपनी पुस्तक की भूमिका में लेखिका कहती हैं, ‘जब हम दुनिया को नारीवाद की आंख से देखते हैं तो हमें वह माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के ‘रिवील फार्मेंटिंग फंक्शन’ जैसी दिखाई पड़ती है। पता चलता है कि हम जिसे समतल और संपूर्ण सतह मानकर चल रहे थे, उसके नीचे कितनी गुत्थियां और जटिलताएं मौजूद हैं।’
लेखिका ने नारीवाद की हर तरह से विवेचना और पुरुष से तुलनात्मक अध्ययन कर नयी-नयी व्याख्या की है। पुस्तक में आठ अध्याय, एक ग्रंथ सूची, और अनुक्रमणिका है जो किताब में किये गये नारीवाद वाद-विवाद को संबल प्रदान करते हैं। लेखिका ने ये किताब नारीवादी राजनीति तथा सत्ता के जेंडर-आधारित रूपों की कार्यप्रणाली समझाने पर जोर दिया है। यह किताब महिला-राजनीतिज्ञ के बारे में नहीं है। निवेदिता ने इस महिला प्रधान ‘केसज’ में नये सवाल और मुद्दे उठाने की सफल कोशिश की है। ‘न्यूड मेकअप’ से शुरू होकर लेखिका ने ‘श्रम का यौनिक विभाजन’, ‘पूर्व-आधुनिकता और गैर-पश्चिमी संस्कृतियों में देह’, ‘प्रकृति में सेक्स का स्थान वही है जो संस्कृति में जेंडर’, ‘यौन हिंसा’ और ‘वास्तविक देह क्या है जैसे कई महत्वपूर्ण विषय उजागर किये हैं।
आठ अध्यायों में परिवार, देह, कामना, यौन हिंसा, नारीवाद था महिलाएं, पीड़ित या एजेंट, निष्कर्ष और पाद-टिप्पणियां समाहित हैं और इनमें कुछ पीड़िताओं की व्यथा और कथा भी है।
यह किताब भारत की नारीवादी राजनीति में लंबे समय से चली आ रही इस समझ को दोबारा केंद्र में लाने का प्रयास करती है कि नारीवाद का सरोकार केवल महिलाओं से नहीं है। इसे पढ़कर ये जरूर महसूस होगा कि नारी ही नारी की दुश्मन नहीं है।
पुस्तक : नारीवादी निगाह से : लेखिका : निवेदिता मेनन हिंदी अनुवाद : नरेश गोस्वामी प्रकाशक : राजकमल, नई दिल्ली पृष्ठ : 239 मूल्य : रु. 299.