कृष्णलता यादव
अनघ शर्मा के सद्य: प्रकाशित कहानी संग्रह, ‘आवाज़ें कांपती रहीं’ में खूबसूरती से बुनी गई नौ कहानियां हैं। हर कहानी का ध्यानाकर्षक शीर्षक, समय की उठापटक से मुठभेड़ करते किरदार, शीर्षक पर खरा उतरता कथानक, और कथ्य का सम्मोहन ऐसा कि कहानी को एकाधिक बार पढ़ा जाता है। फिर पाठक का साक्षात्कार होता हैndash; सूक्ति-संसार, किरदारों की बनती-बिगड़ती मनोदशाओं और कहन के अनूठे अंदाज से। पुस्तक के शीर्षक के विषय में लेखक ने लिखा है, ‘कहानियों के किरदारों ने अतीत को बार-बार पलट-पलट कर ढूंढ़ा, ये जाने किसे कांपती आवाजों से आगे बढ़कर पुकारते रहे।’
युद्ध की भयावहता से भरपूर कहानी है, बीच समन्दर मिट्टी है। चतुर्दिक परिवेश में समाई धूल-धुआं, बारूदी गंध, कैम्पों का नारकीय जीवन, रोग-शोक, खूनी मंजर, आहें-कराहें और मौत का साम्राज्य। ऐसे नमीरहित वातावरण में प्यार की कोंपल फूटें तो भला कैसे?
‘उदास बारिशों की एक शाम और हवा का एक पंछी’ कहानी का कथानक एक दम्पति और उसकी दो सन्तानों की परिक्रमा करता है। मिसरा (गृहस्वामी) गृहस्थी के बोझ से बुरी तरह घबराया, लस्त-पस्त हुआ, कुर्सी में धंसा रहना अपना धर्म समझता है। विन्नू जीजी अद्भुत जीवट के बूते हर मोर्चे पर लड़ती है, पिता को उसके सामने खरी-खोटी सुनाती है, अपने मां-जाये को ढूंढ़ती है। अपनी परवाह न करके परिजनों के लिए शीतल छांव बनकर रहती है। और अंत में वह मां से कह ही देती है, ‘मम्मी अब मेरी शादी…।’ सचमुच विन्नू का किरदार कई कोणों से प्रभावित करता है। ‘एक हजार बरस की रात’ कहानी में लड़कियां अपने फैसले आप लेती हैं, जीवन को अपने ढंग से जीती हैं। मनचाहा पाने के लिए किसी भी हद तक जाती हैं। चैन-छीनू अतीत से किनारा कर वर्तमान को वरीयता देती हैं। उदास, उदासीन संध्या को अलविदा कह नई भोर का स्वागत करने को आगे बढ़ जाती हैं।
अनेक मोड़ों वाली कहानी है- जहां हवाओं की पीठ पर छाले हैं। हर मोड़ पर पाठक ठिठकता है, कभी उकड़ू बैठता है, कभी खड़ा होता है, कभी सचेतन हो कर हवा-गंध-रेगिस्तान के कणों से बतियाता हुआ खोहों से गुजरता है। बेचैनियों से मुलाकात करता है, उसकी मजबूरी है यह क्योंकि जहां हवाएं पीठ पर छाले लिए चलती हैं वहां कोई सुकून से कैसे रह सकता है? सुनिए द्वारिकाधीश! यह शोक है, कहानी में द्रोपदी व कृष्ण के जीवंत संवाद हैं। एक ओर द्रोपदी का प्रश्न-पिटारा, दूसरी ओर कृष्ण के तर्क रूपी मोती, मध्य में कथारस में ऊब-चूब हुआ, पाठक मानो महाभारत का नया संस्करण देख रहा हो।
पुस्तक : आवाजें कांपती रहीं लेखक : अनघ शर्मा प्रकाशक : राजकमल पेपरबैक्स, नयी दिल्ली पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 199.