सुशील कुमार फुल्ल
जनकराज शर्मा का उपन्यास ‘सारंग’ एक से अधिक समस्याओं को लेकर बुना गया रोचक उपन्यास है, जो शुरू तो होता है कश्मीर में हिल-2 की उच्चतम पहाड़ी को विजय करने के भारतीय सेना के अभियान से परन्तु बीच बीच में भारत-पाक विभाजन की पीड़ा और परिवारों के टूटने-उजड़ने के मर्मान्तक प्रसंगों के साथ-साथ डालर की चमक-दमक से आकर्षित विदेश गमन के प्रसंगों को भी उपन्यास जोड़ता चलता है।
भानुप्रताप सिंह का बेटा जयदेव सिंह फौज में है। उसे ही हिल-2 पर कब्जा जमाने के लिए अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करने के लिए भेजा जाता है। सूबेदार जयदेव सिंह अपना पराक्रम दिखाता है और अपने मिशन में सफल होता है परन्तु इस मिशन में अन्तिम तीन सैनिक बम ब्लास्ट में बुरी तरह घायल हो जाते हैं और जयदेव सिंह की तो टांग ही काटनी पड़ती है। उसे 26 जनवरी को पराक्रम के लिए शैार्य पुरस्कार मिलता है है। इस के साथ ही उपन्यास का अन्त होता है।
जयदेव सिंह का बड़ा भाई कनाडा चला जाता है। पैसा कमाने के चक्कर में वह घर-परिवार वालों को भी विस्मृत कर देता है और विदेशी लड़की माइबेला से विवाह रचा लेता है। मां-बाप परेशान होते हैं। अन्त में हरिसिंह भानुप्रताप की सहायता करता है और वह पवन कुमार शर्मा से सम्पर्क साध कर सुखदेव सिंह का पता करवाता है और भानुप्रताप सिंह से बात भी करवा देता है। डाॅ. प्रीत कौर और डॉ. अरुण कुमार का प्रेेम विवाह और फिर मारिया और पोंढाल का डॉ. अरुण को ब्लैकमेल करना, थाने में छेड़छाड़ की झूठी रिपोर्ट लिखवा कर पैसा निकलवाने का प्रयत्न और अनमोल का हस्तक्षेप, ये सब घटनाएं अर्थपूर्ण एवं प्रासंगिक हैं। कनाडा या आस्ट्रेलिया के जीवन का ज्यादा विवरण तो नहीं दिया गया लेकिन भारतीय लोगों के वहां होने के कारणों का सटीक वर्णन किया गया है। लेखक का दृष्टिकोण सुधारवादी है। पुरानी परम्पराओं के अनुसार लेखक कथानक में अनेक प्रसंगों को इस कुशलता के साथ पिरो देता है कि लगता है कि लेखक एक ही रचना में बहुत कुछ कह देना चाहता है। जो उपन्यास शौर्य गाथा के रूप में शुरू हुआ वह अन्ततः सामाजिक उथल-पुथल का लेखा-जोखा बन कर रह गया। उपन्यासकार कहीं-कहीं अनावश्यक ज्ञान बघारता भी जान पड़ता है यथा यह कथन— ‘भोजन का असली स्वाद तो भूखा ही जानता है। स्वाद भोजन में नहीं, भूख में है। भूख जितनी बड़ी होगी, भोजन का स्वाद भी उतना ही अधिक होगा। तृप्त व्यक्ति को स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन भी रुचिकर नहीं लगता जबकि क्षुधित व्यक्ति पेट भर जाने तक रूखे-सूखे भोजन में भी उस परम आनन्द का अनुभव करता है जिस की कल्पना करना किसी दूसरे के लिए संभव नहीं है।’ आदि-आदि।
‘सारंग’ उपन्यास पाठक को बांधे रखता है और घटनाओं का संयोजन कलात्मक है। समस्याओं का समाधान देने में भी लेखक को आनन्द मिलता है।
पुस्तक : सारंग लेखक : जनकराज शर्मा प्रकाशक : मोनिका प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 450.