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समकालीन चेतना का सशक्त स्वर

पुस्तक समीक्षा
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तेजेंद्र पाल सिंह

साहित्यकार डॉ. महेंद्र सिंह ‘सागर’ की नौवीं कृति ‘मत छेड़ना प्रिये!’ (काव्य-संग्रह) का प्रकाशन हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, पंचकूला के सौजन्य से हुआ है। इस काव्य-संग्रह में हरियाणवी संस्कृति, बालिका, पर्यावरण एवं जल-संरक्षण, ऋतु-चक्र, देशभक्ति, सैनिक, मज़दूर, पौधारोपण, नशाबंदी, रिश्ते, शिक्षा, सामाजिक-आर्थिक विषमता एवं जीवन-दर्शन से संबंधित छंदोबद्ध रचनाएं संकलित हैं।

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‘मत छेड़ना प्रिये!’ इस काव्य-संग्रह की शीर्षक कविता है, जिसमें प्रेम की तुलना में देश-रक्षा के कर्तव्य को प्राथमिकता दी गई है। मानव को चेताने वाली तथा जल-संरक्षण का संदेश देने वाली कवि महेंद्र सिंह ‘सागर’ की ये काव्य-पंक्तियां दृष्टव्य हैं :-

‘सोच-समझकर खर्चो पानी,

वरना याद करोगे नानी।’

इन काव्य-पंक्तियों को नारे के रूप में जल-चेतना अभियान में प्रयुक्त किया जा सकता है। दोहा, चौपाई, कुण्डलिया तथा हाइकु आदि छंदों में बद्ध इस काव्य-संग्रह की रचनाओं में कहीं-कहीं लय भंग भी होती है। उपमा, श्लेष, पुनरुक्ति-प्रकाश, अंत्यानुप्रास, मानवीकरण तथा यमक आदि अलंकारों से सुसज्जित, मुहावरों और लोकोक्तियों से युक्त इस काव्य-संग्रह की भाषा सरल, प्रवाहमयी और प्रभावशाली है। इस संग्रह में व्याकरण तथा टंकण संबंधी कुछ त्रुटियां भी पाई गई हैं।

कवि की दृष्टि केवल सौंदर्यवर्द्धन तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सामाजिक विसंगतियों पर भी तीखा प्रहार करती है। उनके लेखन में लोकचेतना की स्पष्ट झलक मिलती है, जो पाठकों को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करती है।

कुल मिलाकर, डॉ. महेंद्र सिंह ‘सागर’ का यह काव्य-संग्रह सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना जागृत करने में सफल सिद्ध होता है।

पुस्तक : मत छेड़ना प्रिये! कवि : डाॅ. महेंद्र सिंह ‘सागर’ प्रकाशक : शब्दश्री प्रकाशन, सोनीपत पृष्ठ : 128 मूल्य : रु. 350.

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