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सामाजिक-राजनीतिक विसंगतियों पर तंज

पुस्तक समीक्षा
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मनमोहन गुप्ता मोनी

नाटक ‘हवन’ डॉ. महेंद्र सिंह ‘सागर’ द्वारा रचित नवीनतम नाटक है। इससे पूर्व उनकी 10 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सहज वार्तालाप की शैली में रचित 6 दृश्यों और 29 पात्रों वाला यह नाटक सामाजिक कुरीतियों को केंद्र में रखता है। लेखक का कहना है कि भले ही हमारा सामाजिक दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया हो, लेकिन समाज में सामाजिक समरसता की कमी आज भी देखी जा सकती है। कभी हम धार्मिक विवादों में उलझ जाते हैं तो कभी ऊंच-नीच का भेदभाव हमारे बीच आ खड़ा होता है।

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नाटक की कथा एक गांव में होने वाली अकाल मौतों से आरंभ होती है। इसमें अफवाहों का जोर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सभी इस चिंता में डूबे हैं कि ये मौतें क्यों हो रही हैं? कोई पुजारी की बात करता है तो कोई आत्माओं की उपस्थिति को कारण मानता है। इस परिस्थिति का लाभ कौन उठा रहा है—यही नाटक की मुख्य विषय-वस्तु है।

राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो नेताओं की परेशानी यह है कि चुनाव निकट हैं, लेकिन भुनाने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिल रहा। यदि यही स्थिति बनी रही, तो वर्तमान सरपंच का पद अगले पांच वर्षों के लिए और पक्का हो जाएगा। नाटक में चुनावी राजनीति की विसंगतियों का ताना-बाना अत्यंत प्रभावी ढंग से बुना गया है।

नाटक की भाषा में व्यंग्यात्मकता भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उदाहरण के तौर पर ‘अभी मौका है सबके पास। पैरों को जिसे छूना हो, छू लो। यदि महंत बन गया तो अवसर हाथ से निकल जाएगा।’ यह संवाद सत्ता और अवसरवाद पर करारा व्यंग्य करता है।

पुस्तक : हवन ( नाटक) लेखक : महेंद्र सिंह ‘सागर’ प्रकाशक : शब्दश्री प्रकाशन, सोनीपत पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 350.

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