सामयिक परंपरा है संयम, समता व साधना का संगम
जैन संत अरुण मुनि ने कहा कि भगवान महावीर की साधना का मूल संदेश अंतर्मुखी अराधना है। शरीर का सशक्त बनाना आवश्यक, लेकिन उससे भी आवश्यक आत्मा को सशक्त बनाना है। जैन संत अग्रवाल मंडी में चातुर्मास के दौरान धर्म सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सामयिक की महिमा का विशेष रुप से उल्लेख किया। उन्होंने सामायिक को आत्मा की तीर्थयात्रा बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा समय जब आत्मा बाहर नहीं भीतर की ओर यात्रा करती है। उन्होंने कहा कि सामायिक केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि संयम, समता और साधना का संगम है। साधु का जीवन स्वयं सामायिक का पर्याय है। सामायिक वह शक्ति है जो विचारों को निर्मल बनाती है और जीवन को संतुलित करती है। सामायिक की 48 मिनट की साधना में कोई बाहरी पूजा नहीं, बल्कि भीतर के देव का साक्षात्कार होता है। जैन मुनि ने आज के सामाजिक परिदृश्य पर भी गहरा चिंतन करते कहा कि बैंक बैलेंस होना कोई गारंटी नहीं है कि जीवन शांत होगा। लेकिन जिनके पास धर्म रूपी सामायिक का बैलेंस है, वे कभी भी मानसिक अशांति का शिकार नहीं होते। उन्होंने जैन धर्म के चारों संप्रदायों का उल्लेख करते हुए कहा पूजा-पद्धतियाँ अलग हो सकती हैं, लेकिन यदि कोई एक साधना चारों संप्रदायों में समान रूप से पूज्यनीय है, तो वह है सामायिक। उन्होंने कहा कि सामायिक कोई पंथ विशेष की नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा है।