चंदे को लेकर किसान संगठनों में मतभेद, पैसे का हिसाब न मिलने के आरोप
संगरूर, 29 अप्रैल (निस)
तीन कृषि कानूनों को लेकर एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन में देश-विदेश से चंदे को लेकर किसान संगठनों में पैदा हुए मतभेद के बाद अब शंभू व खनौरी बॉर्डर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर एक साल से अधिक समय तक चले आंदोलन में भी ऐसे ही आरोप दोहराए जा रहे हैं। बड़ी बात यह है कि लंगर का सामान बेचने और लोगों से एकत्र किए गए पैसे का हिसाब न मिलने के आरोप कहीं बाहर से नहीं लगाए जा रहे हैं, बल्कि भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के नेताओं द्वारा आपस में ही लगाए जा रहे हैं, जिसके अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल 125 दिनों से अधिक समय से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता इंद्रजीत सिंह कोटबुड्डा ने आरोप लगाया है कि आंदोलन चलाने के लिए एकत्र किए गए धन का कोई हिसाब नहीं दिया जा रहा है। यदि एकत्रित धनराशि किसानों के कर्ज चुकाने पर खर्च की जाती तो कर्ज चुकाया जा सकता था। उन्होंने आरोप लगाया कि किसानों को लंगर चलाने के लिए जो खाद्यान्न मिल रहा है, उसे भी बेच दिया गया है, चाहे वह दूध हो या गेहूं।
एसकेएम के एक अन्य नेता जंगवीर सिंह चौहान ने डल्लेवाल के 125 दिनों से अधिक समय से अनशन पर कहा कि इतने दिनों से उनके भूखे रहने से विज्ञान भी हैरान है।
डल्लेवाल ने दिया जवाब
वहीं, डल्लेवाल ने कोटबुड्डा और जंगवीर चौहान के आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि ये किसान नेता इसलिए नाराज हैं क्योंकि उन्हें 4 मई को होने वाली बैठक में नहीं ले जाया जा रहा। उन्होंने कहा कि संगठन वरिष्ठ नेताओं को रोटेशन पर ले जाता है। उन्होंने कहा कि दान में एक भी गलती नहीं हुई। ये सब छोटी-छोटी बातें हैं, हम जल्द ही समीक्षा बैठक बुलाएंगे और इन बातों पर चर्चा करेंगे। लंगर का सामान बेचने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कई बार जब गेहूं या दूध जरूरत से ज्यादा हो जाता है तो वे उसे बेचकर लंगर के लिए आलू, प्याज, सब्जी, दाल आदि अन्य जरूरी सामान खरीद लेते हैं। भूख हड़ताल पर उन्होंने कहा कि डॉक्टरों की जांच रिपोर्ट उपलब्ध है और उसे देखा जा सकता है।