उपराष्ट्रपति धनखड़ बोले- संविधान की प्रस्तावना ‘परिवर्तनशील नहीं', आपातकाल में किया गया था ‘बदलाव'
नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) Constitution Preamble: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संविधान की प्रस्तावना “परिवर्तनशील नहीं” है। धनखड़ ने कहा कि भारत के अलावा किसी दूसरे देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया।...
नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा)
Constitution Preamble: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संविधान की प्रस्तावना “परिवर्तनशील नहीं” है। धनखड़ ने कहा कि भारत के अलावा किसी दूसरे देश में संविधान की प्रस्तावना में बदलाव नहीं किया गया। उन्होंने कहा, "इस प्रस्तावना में 1976 के 42वें संविधान (संशोधन) अधिनियम के जरिये बदलाव किया गया था।"
उन्होंने कहा कि संशोधन के माध्यम से इसमें "समाजवादी", "धर्मनिरपेक्ष" और "अखंडता" शब्द जोड़े गए थे। धनखड़ ने कहा, "हमें इस पर विचार करना चाहिए।" उन्होंने कहा कि बी. आर. आंबेडकर ने संविधान पर कड़ी मेहनत की थी और उन्होंने "निश्चित रूप से इस पर ध्यान केंद्रित किया होगा।"
धनखड़ ने यह टिप्पणी यहां एक पुस्तक के विमोचन समारोह में की। उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने बृहस्पतिवार को संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान किया था।
RSS ने कहा था कि इन शब्दों को आपातकाल के दौरान शामिल किया गया था और ये कभी भी आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान का हिस्सा नहीं थे। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबाले के इस आह्वान की आलोचना की है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए कि 'धर्मनिरपेक्ष' व 'समाजवादी' शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं।
उन्होंने इसे 'राजनीतिक अवसरवाद' और संविधान की आत्मा पर 'जानबूझकर किया गया हमला' करार दिया है। होसबाले के बयान से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। इस बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से संबद्ध एक पत्रिका में शुक्रवार को प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले द्वारा संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों की समीक्षा करने का आह्वान, इसे तहस-नहस करने के लिए नहीं है, बल्कि आपातकाल के दौर की नीतियों की विकृतियों से मुक्त होकर इसकी ‘‘मूल भावना'' को बहाल करने के बारे में है।
संविधान की प्रस्तावना में "समाजवादी" और "धर्मनिरपेक्ष" शब्दों की समीक्षा करने के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के आह्वान का परोक्ष रूप से समर्थन करते हुए केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने शुक्रवार को कहा था कि कोई भी सही सोच वाला नागरिक इसका समर्थन करेगा, क्योंकि हर कोई जानता है कि ये शब्द डॉ. भीम राव आंबेडकर द्वारा लिखे गए मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।