Travelling In India : ना जंग लगा ना धरती से हिला... झारखंड के इस गांव में आज भी स्थित है भगवान परशुराम का शक्तिशाली फरसा!
चंडीगढ़, 17 मई (ट्रिन्यू)
झारखंड के गुमला जिले में स्थित टांगीनाथ धाम एक पौराणिक और धार्मिक स्थल है, जो न केवल अपनी आध्यात्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पहाड़ों के बीच स्थित यह स्थल भगवान परशुराम से जुड़ा हुआ है, जिन्हें हिंदू धर्म में विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है। ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है जहां भगवान परशुराम ने अपना शक्तिशाली फरसा, जिसे 'टांगी' कहा जाता है, धरती में गाड़ दिया था और तभी से यह स्थान टांगीनाथ धाम कहलाया।
जब भगवान पशुराम ने किया शस्त्र का त्याग
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान परशुराम ने धरती से अधर्म और अत्याचार को समाप्त करने के लिए कई युद्ध लड़े। अपने फरसे के बल पर उन्होंने अनेक अत्याचारियों का विनाश किया। जब उन्होंने यह संकल्प लिया कि अब वे शस्त्र का परित्याग करेंगे तब उन्होंने अपना टांगी (फरसा) इस स्थान पर गाड़ दिया। यह टांगी आज भी एक विशाल पत्थर के रूप में यहां विद्यमान है।
भगवान शिव ने परशुराम जी को क्या वरदान दिया था?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने पशुराम को कई दिव्य अस्त्र-शस्त्र दिए थे, जिसमें से फरसा या परशु भी कहा जाता है। यह फरसा अत्यधिक शक्तिशाली और अपराजेय माना जाता है, जोकि भगवान पशुराम के तपस्या, बल और अधर्म से संघर्ष का प्रतीक भी माना जाता है।
आज तक नहीं लगा जंग
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि लोहे का होने के बावजूद भी इसमें आजतक जंग नहीं लगा। यही नहीं, कई लोगों ने इसे अपनी जगह से हिलाने की भी कोशिश की, लेकिन ऐसा मुमकिन ना हो सका। हजारों साल बाद भी यह फरसा धरती में सुरक्षित है और इसे कोई नुकसान नहीं हुआ, जोकि वैज्ञानिकों के लिए भी किसी पहेली से कम नहीं है।
ऋषियों और तपस्वियों की तपोभूमि
टांगीनाथ धाम गुमला जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान पठारी क्षेत्र में बसा हुआ है। यहां मौजूद प्राचीन मंदिर और शिलालेख यह संकेत देते हैं कि यह क्षेत्र कभी ऋषियों और तपस्वियों की तपोभूमि रहा होगा। माना जाता है कि यहां के पत्थरों पर खुदी हुई लिपियां और मूर्तियां करीब एक हजार वर्ष पुरानी हैं।
मंदिर और तीर्थस्थल
टांगीनाथ धाम में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां भगवान शिव के साथ-साथ परशुराम की पूजा भी होती है। यहां हर वर्ष मकर संक्रांति और रामनवमी के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा से भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं।