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कल से शुरू होगा ‘सिद्धार्थी’ का कार्यकाल, सूर्य हैं राजा और मंत्री

कमलेश भट्ट/ट्रिन्यू चंडीगढ़, 28 मार्च रविवार 30 मार्च से ‘सिद्धार्थी’ का कार्यकाल शुरू हो रहा है। इस कार्यकाल में सूर्य राजा हैं और मंत्री भी वही हैं। इस दौरान कई योग-संयोग बन रहे हैं। जी, हम बात कर रहे हैं...

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चित्रांकन : संदीप जोशी
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कमलेश भट्ट/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 28 मार्च

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रविवार 30 मार्च से ‘सिद्धार्थी’ का कार्यकाल शुरू हो रहा है। इस कार्यकाल में सूर्य राजा हैं और मंत्री भी वही हैं। इस दौरान कई योग-संयोग बन रहे हैं। जी, हम बात कर रहे हैं नव संवत्सर की। हर साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर का प्रारंभ होता है। इस बार रविवार को भारतीय नववर्ष विक्रम संवत 2082 की शुरुआत होगी। संवत का नाम सिद्धार्थी (सिद्धार्थ) है।

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नवसंवत्सर में अाकाशी कौंसिल (ग्रह परिषद) के राजा सूर्यदेव होंगे। यही नहीं मंत्री का पद और वर्षा जैसे अधिकार वाला पद मेघेश भी उन्हीं के पास होगा। शनिवार 29 मार्च को गणितानुसार शाम 04 बजकर 28 मिनट पर नववर्ष का प्रवेश होगा, लेकिन यह 30 मार्च को सूर्योदय व्यापिनी तिथि के दिन से प्रारम्भ होगा। नववर्ष का शुभारंभ सिंह लग्न में होगा। जानकारों के अनुसार जब राजा और मंत्री दोनों ही सूर्य होते हैं, तो भीषण गर्मी, आंधी-तूफान और भूकंप की आशंका बनी रहती है। पंचांग दिवाकर हिंसक घटनाओं और नेत्र संबंधी विकारों से सावधानी की भी सलाह देता है।

शुभ संयोग और षट ग्रही योग

पंडित अनिल शास्त्री के मुताबिक ज्योतिष गणना के अनुसार इस संवत में सूर्य, चंद्रमा, शनि, बुध, शुक्र और राहु ग्रहों की युति बनने जा रही है। इसके अलावा बुधादित्य और राजयोग का भी निर्माण हो रहा है, जिसका शुभ असर संबंधित राशि के जातकों पर पड़ेगा। कई दुर्लभ संयोग से मकर और मिथुन राशि के जातकों की किस्मत चमक सकती है और शुभ परिणाम मिलेंगे।

ऐसे होता है राजा और मंत्री का निर्धारण

ज्योतिष के अनुसार जिस दिन नवसंवत्सर आरंभ होता है उस दिन के वार के अनुसार वर्ष का राजा निर्धारित होता है तथा उस वर्ष में पहली संक्रांति को जो वार होता है उस ग्रह को मंत्री पद मिलता है। 30 मार्च को नववर्ष का आरंभ रविवार को हो रहा है और 13 अप्रैल को मेष की संक्रांति आ रही है दोनों दिन रविवार है, इसलिए राजा और मंत्री का पद सूर्य देव को मिलेगा।

सम्राट विक्रमादित्य ने की थी विक्रम संवत की शुरुआत

विक्रम संवत की शुरुआत सम्राट विक्रमादित्य ने 57 ईसा पूर्व की थी, इसलिए इसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। जिस दिन हिंदू नववर्ष शुरू होता है, उसी दिन से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत हो जाती है। शक्ति की आराधना के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

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