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सेलिब्रिटी बाबा नहीं अपनी धुन में साधनारत सनातनी स्वामी मुक्तानंद

जालंधर जन्म-भूमि, चंडीगढ़ कर्म-भूमि, आॅक्सफोर्ड पीएचडी और अब प्रयाग धर्म-भूमि
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हरि मंगल

महाकुंभनगर, 6 फरवरी

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महाकुंभ में एक ओर तो आईआईटीयन जैसे बाबा हैं, जो कैमरों की चकाचौंध के लिए कुछ भी करते हैं और दूसरी ओर ऐसे भी स्वामी हैं जो प्रचार से निर्लिप्त सनातन की सेवा में रत हैं। एेसे अज्ञातवास में लीन बाबा स्वामी मुक्तानंद को खोज निकाला दैनिक ट्रिब्यून ने। कैम्ब्रिज के प्रोफेसर और ऑक्सफोर्ड से पीएचडी करने वाले स्वामी मुक्तानंद सनातन धर्म को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं। अपनी धुन और संकल्प को नये पंख देने के लिए वे महाकुंभ पहुंचे हैं। उनका जन्म पंजाब के जालंधर में हुआ और पढ़ाई चंडीगढ़ में।

देश-विदेश में विख्यात आध्यात्मिक गुरु और जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर ब्रह्मलीन पायलट बाबा के महाकुंभ स्थित शिविर में पकी दाढ़ी, आंखों पर चश्मा और गेरुआ वस्त्रधारी स्वामी मुक्तानंद की सहजता को देखकर उनके बारे में अनुमान लगाना बेमानी साबित होगा। शिविर में रुके रूस, यूक्रेन, जापान, स्पेन, आॅस्ट्रेलिया सहित लगभग 20 देशों के सनातनी भक्त अपनी हर समस्या के लिये स्वामी जी से संपर्क करते दिखायी देंगे। हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ फर्राटेदार रूसी भाषा में जबाब देने की उनकी शैली सभी को प्रभावित करती है। इस संवाददाता से वार्तालाप में जब जीवन यात्रा का प्रसंग छिड़ा तो कहने लगे बचपन से ही मन में संन्यासी बनने की धारणा आ गई। यह क्यों और कैसे आयी यह नहीं जान पाया। जालंधर के जिस परिवार में जन्म हुआ उसकी गिनती अति सम्पन्न परिवारों में होती थी। जालंधर से बहुत ज्यादा सरोकार नहीं रहा तो जल्द चंडीगढ़ आ गया। वहीं शिक्षा शुरू हुई। चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी और इकोनामिक्स में एमए किया। चंडीगढ़ में शिक्षा और तैयारियों की बात चली तो कहा कि दैनिक ट्रिब्यून का नियमित पाठक रहा। इस बीच विदेश भी गया।

74 वर्षीय मुक्तानंद बताते हैं कि कुछ करने को प्रयासरत था। इसी बीच यूके में 400 टीचरों की वेकैंसी निकली तो मैने भी आवेदन कर दिया और वहां 10 टाॅपर्स में मेरा नाम आया। मैंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ज्वाइन कर लिया। उस समय मेरा पैकेज 20 लाख रुपये सालाना से अधिक का था। इस बीच आॅक्सफोर्ड से भी आॅफर आया, लेकिन मैंने मना कर दिया। कुछ दिन बाद आॅक्सफोर्ड से पीएचडी का आॅफर मिला तो वहां चला गया। पीएचडी के बाद अचानक लगा अब लक्ष्य पूरा हो गया। सब कुछ मिल गया। अब संन्यासी बन जाना चाहिये और 1992 में 41 वर्ष की आयु में पद और वैभव का परित्याग कर संन्यास की राह पर चल निकला।

उन्होंने बताया कि शिक्षा और करिअर ने दुनिया में अलग पहचान दिलायी। मैंने अपनी संपत्ति पहले ही परिवार को दे दी थी। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के बारे में लोगों को बताने के लिये विश्व के 60 प्रतिशत से अधिक देशों का भ्रमण कर चुका हूं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म से ज्यादा सरल कोई धर्म नहीं है। आज यूक्रेन में भी सनातन का डंका बज रहा है। यहां हमारे शिविर में रूस और यूक्रेन के नागरिक साथ-साथ रह रहे हैं, क्योंकि वह हिंदू हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म के प्रसार के लिये हमें एक मंच पर मजबूती के साथ खड़े रहना होगा।

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