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रायबरेली के नाम है प्रधानमंत्री को चुनाव हराने का रिकाॅर्ड

कृष्ण प्रताप सिंह अगर आप गांधी नेहरू परिवार का गढ़ मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की इस बेहद हाट लोकसभा सीट (रायबरेली) की बाबत नाना प्रकार के कयासों को पढ़ते-सुनते बोर हो चुके हैं, तो आपके लिए यह जानना दिलचस्प...
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कृष्ण प्रताप सिंह

अगर आप गांधी नेहरू परिवार का गढ़ मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश की इस बेहद हाट लोकसभा सीट (रायबरेली) की बाबत नाना प्रकार के कयासों को पढ़ते-सुनते बोर हो चुके हैं, तो आपके लिए यह जानना दिलचस्प होगा कि इस सीट के नाम एक गजब का रिकाॅर्ड दर्ज है- प्रधानमंत्री को चुनाव हराने का रिकॉर्ड।

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1977 में इसने तत्कालीन कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हराकर यह रिकाॅर्ड बनाया था, जो उसके बाद से अब तक हुए ग्यारह लोकसभा चुनावों में अटूट चला आ रहा है। दिलचस्प यह भी कि इंदिरा गांधी इससे पहले 1975 में ही देश की एकमात्र ऐसी प्रधानमंत्री बन गई थीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिनके द्वारा 1971 में समाजवादी नेता राजनारायण को हराकर जीता गया इस सीट का चुनाव रद्द कर दिया था। फिर अपने इस्तीफे के बढ़ते दबाव के बीच कैसे उन्होंने देश में इमरजेंसी और प्रेस सेंसरशिप लगाई और ज्यादातर विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया, यह अब इतिहास का हिस्सा है।

इसके दो साल बाद 1977 में उन्होंने अचानक लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी तो इन्हीं राजनारायण ने उनकी इसी सीट पर उन्हें फिर चुनौती दी। फिर तो वे 52,000 वोटों से हार गईं और किसी भी चुनाव में अपनी सीट गंवाने वाली देश की पहली व एकमात्र प्रधानमंत्री भी बन गईं।

रायबरेली शहर में क्रांतिपुरी निवासी राजनीतिविज्ञानी डाॅ. रामबहादुर वर्मा इसका हवाला देते हुए पूछते हैं कि अपना ‘वीवीआईपी ट्रीटमेंट’ खोने का रिस्क उठाकर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को हरा देने के बावजूद यह सीट कांग्रेस का गढ़ क्योंकर है? फिर इस बाबत फैली आम धारणा को नकारते हुए वे खुद ही उत्तर देते हैं- कई लोग यह जताने के लिए इसे कांग्रेस का गढ़ कहते हैं कि इसे मेरिट के आधार पर अपने सांसदों का चुनाव करना नहीं आता। वे भूल जाते हैं कि इसने 1996 व 1998 में कांग्रेस को हराकर भाजपा के अशोक सिंह को भी तो चुना ही था।

वर्मा के साथ बैठे उनके दो असहमत साथी कहते हैं- कांग्रेस का गढ़ तो निस्संदेह था यहां, लेकिन वह जनता पार्टी के हाथों 1977 में ही ढह गया था और 1996 में रही-सही कसर भाजपा ने पूरी कर दी थी। वह अपनी बात में जोड़ते हैं, ‘ठीक है कि यहां अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस सर्वाधिक 17 बार (उपचुनावों सहित) जीती है और भाजपा के खाते में दो व जनता पार्टी के खाते में सिर्फ एक जीत दर्ज़ है, लेकिन इस बात को भुलाया कैसे जा सकता है कि 2009 में 72.23 प्रतिशत वोट पाकर जीती सोनिया गांधी को 2014 में 8.43 प्रतिशत और 2019 में फिर आठ प्रतिशत मतों का नुक़सान उठाना पड़ा था।

अमेठी से नहीं तुलना गांधी नेहरू परिवार के दूसरे गढ़ अमेठी से इसकी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इसने अब तक इस परिवार की सिर्फ एक सदस्य इंदिरा गांधी को ही चुनाव हराया है, जबकि अमेठी संजय गांधी (1977) को भी हरा चुकी है, उनकी पत्नी मेनका गांधी (1984) को भी और भतीजे राहुल गांधी (2019) को भी। अमेठी उस गांधी बनाम गांधी लड़ाई का मजा भी चख चुकी है, रायबरेली के सिलसिले में जिसके कयास एक समय प्रियंका गांधी वाड्रा और वरुण गांधी के मुकाबले की कल्पना तक जा पहुंचे थे।

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