Punjab's First Cinema Hall: 110 साल बाद बंद हुआ पंजाब का पहला सिनेमा हॉल, 'चित्रा टॉकीज' ने कहा अलविदा
अमृतसर, 29 जून (ट्रिन्यू)
Punjab's First Cinema Hall: पंजाब के पहले सिनेमा हॉल 'क्राउन सिनेमा' (बाद में 'चित्रा टॉकीज') ने 110 वर्षों तक कला, सिनेमा और संस्कृति की विरासत को समेटे रखने के बाद अब हमेशा के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं। अमृतसर के हॉल गेट के पास स्थित यह ऐतिहासिक भवन अब पुनर्विकास के लिए ढहाया जा रहा है।
इस इमारत की शुरुआत 15 जून 1915 को एक भव्य समारोह के साथ हुई थी। महना सिंह नाग्गी, लुल्लां गांव के एक समृद्ध ठेकेदार, ने इसे अंग्रेजी शासनकाल में बनवाया था। भवन पर उस समय ब्रिटिश यूनियन जैक लहरा रहा था और उद्घाटन समारोह में 2,000 बल्बों की रोशनी, संगीत मंडली और सुनहरी चाबी से दरवाजों का उद्घाटन इस भव्यता का प्रतीक था।
क्राउन से चित्रा टॉकीज तक का सफर
‘क्राउन सिनेमा’ ने बंटवारे के बाद 'चित्रा टॉकीज' के नाम से पहचान बनाई। दो मंजिला बालकनी, 2,000 लोगों की बैठने की क्षमता और अभिनेताओं के लिए विशेष कमरे। इसने एक समय सिनेमा के साथ-साथ थिएटर, साहित्यिक गोष्ठियों और कवि सम्मेलनों का मंच भी बनकर उभरने में योगदान दिया। सआदत हसन मंटो, शमशाद बेग़म, फरीदा खानम जैसे कलाकारों ने यहां प्रस्तुतियां दीं।
इतिहासकार सुरिंदर कोचर बताते हैं, “इस इमारत की हर ईंट पर 'MS' खुदा था, जो महना सिंह का हस्ताक्षर था। यह महज एक सिनेमा नहीं, बल्कि पंजाब के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक था।”
इमारत की स्थापत्य विशेषताएं और योगदान
यह भवन भारतीय और यूरोपीय स्थापत्य शैली का मिलाजुला उदाहरण था। इसके भीतर एक होटल और रेस्तरां भी थे, जो अमृतसर के उच्चवर्गीय समाज का प्रमुख ठिकाना बन गया था। लेकिन इसका मकसद सिर्फ फिल्म दिखाना नहीं था। शुरुआती दौर में जब अमृतसर थिएटर और कवि सम्मेलनों का केंद्र था, तब महना सिंह ने फिल्मों के साथ-साथ नाट्य प्रस्तुतियों और शायरी की महफिलें आयोजित कर इस जगह को एक सांस्कृतिक केंद्र में तब्दील कर दिया।
अब केवल स्मृति शेष...
वर्षों तक सैकड़ों दर्शकों की भीड़ से गूंजने वाला चित्रा टॉकीज अब वीरान हो चुका है। नई पीढ़ी के लिए यह सिर्फ एक खंडहर रह गया है, जिसे 'भूतिया' तक कहा जाने लगा था। भवन के रख-रखाव में लापरवाही, मालिकाना हक में बदलाव और सरकार द्वारा संरक्षण की कमी के कारण यह धरोहर ढहने की कगार तक पहुंच गई।
73 वर्षीय सुबाष सहगल, जो बचपन में यहां ‘नानक नाम जहाज है’ देखने आए थे, भावुक होते हुए कहते हैं, “एक रुपये का टिकट लेकर बड़ी मुश्किल से अंदर पहुंचते थे... वो भीड़, वो उत्साह अब कभी वापस नहीं आएगा।”
कहानी का अंत, लेकिन विरासत अमर
चित्रा टॉकीज का अंत महज एक पुरानी इमारत का ढहना नहीं है, बल्कि यह पंजाब की सांस्कृतिक स्मृति का बिखराव है। वह स्मृति जिसमें सिनेमा से पहले कविता, नाटक और संगीत की आत्मा बसती थी। अब जबकि यह ऐतिहासिक इमारत पुनर्विकास के तहत ध्वस्त की जा रही है, हर गिरती ईंट एक कहानी कहती है — कला, इतिहास और विरासत की कहानी।