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पंजाब ट्रैक्टरों का ‘राजा’, हरियाणा ‘महाराजा’

ट्रैक्टर घनत्व में दोनों राज्य देश में सबसे आगे
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ट्रैक्टर को ‘खेतों का राजा’ कहा जाता है। देश में ट्रैक्टर घनत्व की बात करें तो पंजाब ‘राजा’, जबकि उसका छोटा भाई कहलाने वाला हरियाणा ‘महाराजा’ लगता है।देश भर में 18.10 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन है। इस लिहाज से पंजाब का कृषि क्षेत्र देश का सिर्फ 2.33 और हरियाणा का 2.07 प्रतिशत है। जबकि देश के कुल ट्रैक्टरों में से 5.80 प्रतिशत पंजाब में और 6.19 प्रतिशत हरियाणा में हैं। आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 1.09 करोड़ कृषि ट्रैक्टर हैं, यानी औसतन 16.52 हेक्टेयर पर एक। हरियाणा में 37.59 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर 6.78 लाख ट्रैक्टर चल रहे हैं, यानी 5.53 हेक्टेयर पर एक ट्रैक्टर है। पंजाब में 42.35 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती के लिए 6.36 लाख ट्रैक्टर हैं। यानी औसतन 6.65 हेक्टेयर भूमि पर एक ट्रैक्टर।

ये बोझ का भी कारण

ट्रैक्टर घनत्व के मामले में पंजाब और हरियाणा देश भर में अग्रणी हैं। हालांकि, कृषि अर्थव्यवस्था के संतुलन के लिहाज से इतने ज्यादा ट्रैक्टर किसानों पर वित्तीय बोझ भी हैं। अन्य राज्यों पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश में औसतन 11.06 हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 8.45 हेक्टेयर, गुजरात में 14.91 हेक्टेयर, कर्नाटक में 15.04 हेक्टेयर, राजस्थान में 16.57 हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 55.47 हेक्टेयर पर एक ट्रैक्टर है।

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देश में लगभग 21 ट्रैक्टर कंपनियां हैं, जिनके लिए पंजाब और हरियाणा सोने की खान की तरह हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पंजाब में मुख्यत: दो फसलीय प्रणाली होने के कारण एक एकड़ कृषि में सालाना केवल 224 घंटे का ही काम रह गया है। कृषि यंत्रों की अधिकता के कारण, लगभग दो लाख किसान कृषि से बाहर हो गए हैं। डॉ. सुखपाल सिंह द्वारा वर्ष 2005 में कृषि ऋण पर किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि जिन किसानों के पास ट्रैक्टर हैं, उन पर बिना ट्रैक्टर वाले किसानों की तुलना में ढाई गुना अधिक कर्ज है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के मुख्य कृषि अर्थशास्त्री डॉ. गुरजिंदर सिंह रोमाना कहते हैं कि अगर ट्रैक्टर का इस्तेमाल साल में कम से कम एक हजार घंटे खेती के लिए किया जाए, तो यह आर्थिक रूप से लाभदायक है, लेकिन पंजाब में ट्रैक्टर का इस्तेमाल साल में सिर्फ 250 घंटे ही होता है, जो घाटे का सौदा है।

केंद्र सरकार ने 2018 में पराली प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी देना शुरू किया, तो पंजाब और हरियाणा में कृषि उपकरणों और बड़े ट्रैक्टरों की संख्या तेजी से बढ़ी। पराली प्रबंधन संबंधी मल्चर, वीडर, सुपर सीडर जैसे उपकरणों के लिए 50 हॉर्सपावर से ज्यादा क्षमता का बड़ा ट्रैक्टर जरूरत बना दिया गया।

जब हम सड़कों पर सजे-संवरे ट्रैक्टर खड़े देखते हैं, तो एक अलग पंजाब दिखाई देता है। हालांकि, छोटे और मझोले किसानों की कहानी अलग है। बठिंडा के कराड़वाला गांव के प्रगतिशील किसान हरचरण सिंह ढिल्लों कहते हैं कि जिन किसान परिवारों में नयी पीढ़ी ने काम संभाला है, वहां छोटे खेतों में भी बड़े ट्रैक्टर दिखते हैं। उन्होंने कहा कि अनावश्यक कृषि मशीनरी किसानों की आय को चूसती है, परिवार कर्ज में डूबते जा रहे हैं। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

पंजाब कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह कहते हैं कि किसानों के घरों में आज भी कई पुराने ट्रैक्टर खड़े हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं हो रहा। उनके कारण भी कुल ट्रैक्टरों का आंकड़ा बढ़ता है। उन्होंने कहा कि किसान खेती के अलावा ढुलाई के लिए भी ट्रैक्टर ट्रॉलियों का इस्तेमाल करते हैं।

बड़े ट्रैक्टरों में पंजाब नंबर वन

50 हॉर्सपावर से ज्यादा के बड़े ट्रैक्टरों की संख्या के मामले में पंजाब देश में सबसे आगे है। यहां तक कि 75 हॉर्सपावर तक के ट्रैक्टर भी पंजाब में खरीदे जा रहे हैं। अप्रैल-मई 2025 के दौरान देश भर में 50 हॉर्सपावर से ज्यादा के 2796 बड़े ट्रैक्टर बिके। इनमें से 565 ट्रैक्टर (20.21 फीसदी) अकेले पंजाब में बिके। अप्रैल से नवंबर 2024 के बीच 25.46 प्रतिशत बड़े ट्रैक्टर पंजाब में बिके।

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