नयी दिल्ली, 6 मई (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को दशकों पुराने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने में केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह मनमाना कृत्य है कि नहर के निर्माण के लिए पहले से ही अधिग्रहित भूमि को पंजाब में गैर-अधिसूचित कर दिया गया। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों का निर्णय केवल कानून के आधार पर नहीं किया जा सकता तथा जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें व्यापक प्रभाव वाले अन्य कारकों पर भी विचार करना होगा।
केंद्र द्वारा हाल में दाखिल हलफनामे का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र ने इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए पहले ही प्रभावी कदम उठाए हैं। पीठ ने कहा, ‘यदि दोनों पक्षों के बीच यह मुद्दा सौहार्दपूर्ण ढंग से हल नहीं होता है तो हम इस मामले पर 13 अगस्त को सुनवाई करेंगे।’
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार सरकार ने बैठकें आयोजित कर पक्षों के बीच मध्यस्थता का प्रयास किया। हरियाणा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि यह मुद्दा अदालत द्वारा पारित आदेश के क्रियान्वयन से संबंधित है। दीवान ने अदालत के आदेशों का पालन करने पर जोर दिया।
अपने दायित्व से बच रहा पंजाब
पीठ ने नहर के निर्माण के लिए अधिग्रहित भूमि को गैर अधिसूचित करने पंजाब के फैसले को अदालत के आदेश को विफल करने का प्रयास बताया और कहा कि यह स्पष्ट रूप से मनमानी कार्रवाई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि हरियाणा ने अपने दायित्व का निर्वहन किया और नहर के हिस्से का निर्माण किया, जबकि पंजाब किसी न किसी कारण से अपने दायित्व का निर्वहन करने से बच रहा है। पंजाब के वकील ने कहा कि नहर के निर्माण का मुद्दा पूर्व में राज्य में अशांति का कारण बना था, जो जनता के लिए बहुत भावनात्मक मुद्दा
बन गया।