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Political Comeback सियासी संग्राम के बाद सुखबीर की वापसी, अकाली दल ने फिर सौंपी कमान

अमृतसर, 12 अप्रैल (ट्रिन्यू) Political Comeback शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने शनिवार को संगठनात्मक चुनाव में सुखबीर सिंह बादल को एक बार फिर अपना अध्यक्ष चुना। तीन महीने लंबे सदस्यता अभियान के बाद हुए इस चुनाव में उनका नाम एकमात्र...
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अमृतसर, 12 अप्रैल (ट्रिन्यू)

Political Comeback शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने शनिवार को संगठनात्मक चुनाव में सुखबीर सिंह बादल को एक बार फिर अपना अध्यक्ष चुना। तीन महीने लंबे सदस्यता अभियान के बाद हुए इस चुनाव में उनका नाम एकमात्र उम्मीदवार के तौर पर सामने आया और भारी समर्थन के साथ उन्हें फिर से पार्टी की कमान सौंपी गई। यह वापसी केवल एक चुनावी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक नाटकीय पुनरागमन था, जो धार्मिक विवाद, राजनीतिक दबाव और व्यक्तिगत हमलों से गुज़रने के बाद संभव हो सका।

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16 नवंबर 2024 को सुखबीर बादल ने उस समय पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, जब उन्हें अकाल तख्त ने ' तनखैया' (धार्मिक दोषी) घोषित किया। इस घटनाक्रम ने न केवल SAD के भीतर हलचल मचा दी, बल्कि पंजाब की सियासत में भी भूचाल ला दिया। 2 दिसंबर 2025 को उस समय के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने पूरे पार्टी नेतृत्व को अयोग्य करार देते हुए कहा था कि वे पंथ की मर्यादा के अनुरूप पार्टी नहीं चला सकते।

इसके जवाब में SGPC ने जत्थेदार रघबीर सिंह को हटा दिया और उनकी जगह जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज को नियुक्त किया। SAD प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने स्पष्ट किया कि पार्टी नेतृत्व ने अकाल तख्त के निर्देशानुसार धार्मिक सज़ा भुगत ली है और अब वह दोषमुक्त है।

संकट के समय साहस और डटे रहने की मिसाल

सुखबीर के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने पार्टी को कई बार चुनावी जीत दिलाई और जब मुश्किलें आईं, तो उन्होंने पंथ के सामने पेश होकर तनखा भुगती। गोल्डन टेंपल के बाहर जब वे धार्मिक दंड भुगत रहे थे, उस दौरान उन पर जानलेवा हमला भी हुआ, लेकिन उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “उन्होंने नेतृत्व के हर कसौटी पर खुद को साबित किया है। कुछ लोगों ने मुश्किल वक्त में उनका साथ छोड़ा, लेकिन वे डटे रहे – यही असली नेतृत्व होता है।”

राजनीतिक सफर

सुखबीर पहली बार दिसंबर 2008 में SAD के अध्यक्ष बने थे, जब उनके पिता प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे। उन्हें पार्टी में कॉर्पोरेट शैली की रणनीति और आधुनिक नेतृत्व लाने वाला अगला जननायक कहा गया। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी का ग्राफ लगातार गिरता गया। 2022 में अकाली दल महज तीन विधायकों तक सिमट गया और 2024 के लोकसभा चुनाव में केवल एक सांसद ही जीत सका।

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