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Pauranik Kahaniyan : जब भगवान राम के इस पूर्वज ने रावण का अंहकार कर दिया था चूर-चूर, लेकिन नहीं कर पाए थे वध

Pauranik Kahaniyan : जब भगवान राम के इस पूर्वज ने रावण का अंहकार कर दिया था चूर-चूर, लेकिन नहीं कर पाए थे वध
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चंडीगढ़, 21 मार्च (ट्रिन्यू)

Pauranik Kahaniyan : भारतीय पुराणों में कई पौराणिक कथाओं का जिक्र मिलता है। उन्हीं में से एक कथा भगवान राम की भी है, जिन्होंने स्त्री के सम्मान के लिए रावण का वध किया। मगर, आज हम आपको भगवान राम के पूर्वज माने जाने वाले राजा मान्धाता की कहानी बताएंगे, जो रावण को कई युद्ध में पराजित कर चुके हैं।

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राजा मान्धाता की महिमा

राजा मान्धाता सूर्य वंश के महान राजा थे, जिनका नाम पुराणों में उल्लेखित है। वे अत्यंत शक्तिशाली, बुद्धिमान और धर्म के प्रति समर्पित थे। मान्धाता ने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए कई महान कार्य किए थे। उनकी शक्ति इतनी थी कि उन्होंने अपने शासनकाल में हर दिशा में विजय प्राप्त की थी और उनके राज्य की सीमाएं बहुत विस्तृत थीं। उनकी वीरता और न्यायप्रियता की वजह से वे न केवल अपने राज्य में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध थे।

राजा मान्धाता ने किया रावण को पराजित

पौराणिक कहानियों के अनुसार, रावण के अहंकार को तोड़ने के लिए राजा मान्धाता ने उसकी शक्ति को चुनौती दी। हालांकि रावण ने मान्धाता को शुरुआत में तुच्छ समझा लेकिन जल्द ही उसे यह महसूस हुआ कि वह न केवल शारीरिक रूप से बलशाली हैं बल्कि उनके पास दिव्य शक्तियां भी हैं। राजा मान्धाता ने रावण के साथ कई युद्ध लड़े और उसका सामना किया।

रावण का अंहकार किया खत्म

यह संघर्ष कई दिनों तक चला। राजा मान्धाता ने रावण के खिलाफ कई रणनीतियां अपनाईं। अंततः राजा मान्धाता ने रावण को युद्ध में हरा दिया। इस पर रावण को यह समझ में आया कि केवल शारीरिक बल और वरदानों से ही किसी का सर्वश्रेष्ठ बनना संभव नहीं है बल्कि दया, सत्य और धर्म का पालन करना भी जरूरी है।

इसलिए नहीं कर पाए रावण का वध

कहा जाता है कि राजा मान्धाता रावण का वध करना चाहते थे। जब रावण युद्ध में कमजोर पड़ गया तो उन्होंने मायावी शक्तियों और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। रावण ब्रह्माजी के वरदान के कारण अमर था। मगर, राजा मान्धाता भी हार मानने को तैयार नहीं थे।

जब युद्ध बहुत लंबा खिंचने लगा तो स्वयं ब्रह्मा जी ने राजा को दर्शन दिए। उन्होंने मान्धाता से कहा कि वह रावण को नहीं मार सकते उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त है। सपर मान्धाता ने ब्रह्माजी के आदेश का सम्मान करते हुए अपनी हठ छोड़ दी और युद्ध को समाप्त करके अपने राज्य लौट गए।

डिस्केलमनर: यह लेख/खबर धार्मिक व सामाजिक मान्यता पर आधारित है। dainiktribneonline.com इस तरह की बात की पुष्टि नहीं करता है।

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