नयी दिल्ली, 30 जुलाई (एजेंसी)
भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) एनवी रमण ने न्याय तक पहुंच को ‘सामाजिक उद्धार का उपकरण’ बताते हुए शनिवार को कहा कि जनसंख्या का बहुत कम हिस्सा ही अदालतों में पहुंच पाता है और अधिकतर लोग जागरुकता एवं आवश्यक माध्यमों के अभाव में मौन रहकर पीड़ा सहते रहते हैं।
सीजेआई रमण ने अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों की पहली बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों को सक्षम बनाने में प्रौद्योगिकी बड़ी भूमिका निभा रही है। उन्होंने न्यायपालिका से ‘न्याय देने की गति बढ़ाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरण अपनाने’ का आग्रह किया। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विधि मंत्री किरण रीजीजू भी शामिल हुए। जस्टिस रमण ने कहा, ‘आधुनिक भारत का निर्माण समाज में असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य के साथ किया गया था। लोकतंत्र का मतलब सभी की भागीदारी के लिए स्थान मुहैया कराना है। सामाजिक उद्धार के बिना यह भागीदारी संभव नहीं होगी। न्याय तक पहुंच सामाजिक उद्धार का एक साधन है।’
विचाराधीन कैदियों की रिहाई में लायें तेजी : मोदी
पीएम मोदी ने न्याय की सुगमता को जीवन की सुगमता जितना ही महत्वपूर्ण बताते हुए न्यायपालिका से आग्रह किया कि वह विभिन्न कारागारों में बंद एवं कानूनी मदद का इंतजार कर रहे विचाराधीन कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया में तेजी लाये। उन्होंने कहा कि नागरिकों का न्यायपालिका पर बहुत भरोसा है और किसी समाज के लिए न्याय प्रणाली तक पहुंच एवं न्याय दिया जाना समान रूप से जरूरी है।
हर जिले में होगी ‘विधिक सहायता’ प्रणाली
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस उदय उमेश ललित ने कहा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) सरकारी वकीलों के कार्यालय की तर्ज पर सभी जिलों में गरीबों और वंचितों के लिए ‘कानूनी सहायता’ प्रणाली स्थापित करने जा रहा है। नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस ललित ने कहा कि नालसा एक ऐसे कार्यक्रम की योजना बना रहा है, जिसके तहत देशभर के उन गरीब आरोपियों के बचाव के लिए कानूनी सहायता मुहैया कराई जाएगी, जो निजी वकीलों का खर्च नहीं उठा सकते। शुरुआत में 350 जिलों का चयन किया गया है।