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Mathura Case: मथुरा शाही ईदगाह परिसर विवाद से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट नौ दिसंबर को सुनवाई करेगा

हिंदू पक्षकारों का दावा है कि मस्जिद पर ऐसे चिह्न मौजूद हैं जिनसे पता चलता है कि यह कभी मंदिर था
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नयी दिल्ली, 29 नवंबर (भाषा)

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Mathura Shahi Idgah Complex Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद से संबंधित हिंदू पक्ष के 18 मामलों की विचारणीयता को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति की याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के खिलाफ दायर की गयी याचिका पर नौ दिसंबर को सुनवाई करेगा।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि वह नौ दिसंबर को अपराह्न दो बजे याचिका पर विस्तृत सुनवाई करेगी। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस पर विस्तार से सुनवाई होगी। हम इस पर नौ दिसंबर को दोपहर दो बजे विचार करेंगे... हमें यह तय करना है कि कानूनी स्थिति क्या है।''

पीठ की ओर से प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि हाई कोर्ट की एकल न्यायाधीश पीठ के एक अगस्त के आदेश के खिलाफ अंतर-न्यायालयीय अपील की जा सकती है। पीठ ने कहा, ‘‘हम निश्चित रूप से आपको बहस करने का अवसर देंगे।''

हाई कोर्ट ने एक अगस्त को मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित 18 मामलों की स्थिरता को चुनौती देने वाली प्रबंधन समिति, ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह की याचिका को खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि शाही ईदगाह के ‘‘धार्मिक चरित्र'' को निर्धारित करने की आवश्यकता है।

मस्जिद समिति का तर्क था कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और उससे सटी मस्जिद के विवाद से संबंधित हिंदू पक्षकारों द्वारा दायर मुकदमे पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करते हैं और इसलिए वे स्वीकार्य नहीं हैं। संसद से पारित 1991 का अधिनियम देश की आजादी के दिन से किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है। इसने केवल राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा।

हिंदू पक्ष द्वारा दायर मामलों में औरंगजेब के समय की मस्जिद को ‘‘हटाने'' का अनुरोध किया गया है। इसके बारे में उनका दावा है कि यह वहां पहले से मौजूद मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई थी। हाई कोर्ट ने कहा कि 1991 के अधिनियम में ‘‘धार्मिक चरित्र'' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है और ‘‘विवादित'' स्थान का मंदिर और मस्जिद का दोहरा धार्मिक चरित्र नहीं हो सकता है, जो एक ही समय में ‘‘एक दूसरे के प्रतिकूल'' हैं।

हाई कोर्ट ने कहा, ‘‘या तो यह स्थान मंदिर है या मस्जिद। इसलिए, मेरा मानना ​​है कि 15 अगस्त, 1947 को विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों से निर्धारित किया जाना चाहिए।''

हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा था कि विचारणीयता को चुनौती देने वाली याचिका खारिज होने के साथ ही हाई कोर्ट मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर सभी संबंधित मामलों की सुनवाई जारी रखेगा। जैन ने यह भी कहा कि हिंदू पक्ष अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगा और इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक हटाने को कहेगा जिसमें मस्जिद का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई थी।

हिंदू पक्षकारों का दावा है कि मस्जिद पर ऐसे चिह्न मौजूद हैं जिनसे पता चलता है कि यह कभी मंदिर था। मस्जिद प्रबंधन समिति और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने तर्क दिया था कि ये मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम और अन्य कानूनों के तहत वर्जित हैं। 31 मई को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद इस सुनवाई योग्य याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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