दिव्यांगों के लिए आसान बनाएं ई केवाईसी : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली, 30 अप्रैल (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगों के लिए ई केवाईसी को आसान बनाने के लिए कहा है। बुधवार को शीर्ष अदालत ने डिजिटल केवाईसी (ग्राहक को जानो) दिशा-निर्देशों में बदलाव का निर्देश दिया ताकि दृष्टिबाधित और तेजाब हमले के पीड़ितों को बैंकिंग सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं समेत अन्य सेवाओं तक पहुंच मिल सके।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने डिजिटल केवाईसी प्रक्रिया को दिव्यांगों के लिए समावेशी और सुलभ बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अलावा केंद्र और उसके विभागों को 20 महत्वपूर्ण निर्देश दिए। पीठ ने कहा कि डिजिटल विभाजन को पाटना अब केवल नीतिगत विवेक का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह सम्मानजनक जीवन, स्वायत्तता और सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक अनिवार्यता है। पीठ ने दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली कठिनाइयों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों, पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चूंकि स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाएं तेजी से डिजिटल मंचों के माध्यम से उपलब्ध हो रही हैं, इसलिए अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की व्याख्या तकनीकी वास्तविकताओं के प्रकाश में की जानी चाहिए।
न्यायालय ने 62 पृष्ठ के फैसले में कहा, ‘ऐसी परिस्थितियों में, संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 38 के साथ अनुच्छेद 21 के तहत सरकार के दायित्वों में यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी शामिल होनी चाहिए कि डिजिटल बुनियादी ढांचा, सरकारी पोर्टल, ऑनलाइन शिक्षण मंच और वित्तीय प्रौद्योगिकियां सार्वभौमिक रूप से सुलभ, समावेशी और सभी कमजोर तथा हाशिए पर रहने वाली आबादी की जरूरतों के प्रति उत्तरदायी हों।' कोर्ट ने कहा, ‘प्रतिवादी प्रत्येक विभाग में डिजिटल सुलभता अनुपालन के लिए जिम्मेदार एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति करेंगे।' पीठ ने कहा कि सभी संस्थाओं को अनिवार्य रूप से प्रमाणित पेशेवरों द्वारा समय-समय पर सुगम्यता ऑडिट कराना होगा और किसी भी एप या वेबसाइट को डिजाइन करते समय या किसी भी नयी सुविधा को शुरू करते समय उपयोगकर्ता स्वीकृति परीक्षण चरण में दृष्टिबाधित व्यक्तियों को शामिल करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला दो याचिकाओं पर आया, जिसमें एक याचिका तेजाब हमले के पीड़ितों द्वारा दायर की गई थी, जो चेहरे की विकृति और आंखों में गंभीर जलन से पीड़ित हैं, इसके अलावा एक व्यक्ति 100 प्रतिशत दृष्टिबाधित है। पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस महादेवन ने कहा कि दूरदराज या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अक्सर खराब संपर्क, सीमित डिजिटल साक्षरता और क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें ई-गवर्नेंस और कल्याण वितरण प्रणालियों तक सार्थक पहुंच से वंचित होना पड़ता है।