ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
शिमला, 25 जून
जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने कहा कि सुशासन और प्रभावी पुलिसिंग के माध्यम से ही पंजाब में खालिस्तान समर्थक ताकतों को फिर से सिर उठाने से रोका जा सकता है। वोहरा शनिवार को राज्य पुलिस मुख्यालय में आयोजित ‘आंतरिक सुरक्षा’ पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। पूर्व रक्षा और गृह सचिव ने इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि सांप्रदायिक विभाजनकारी माहौल के बीच, हड़ताल जैसे मौकों पर राष्ट्र-विरोधी और विध्वंसक तत्व अपने नेटवर्क फैलाने और स्लीपर सेल को सक्रिय करने लगते हैं।
जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चुनाव की ओर अग्रसर केंद्रशासित प्रदेश के लिए जमीनी स्तर पर त्वरित और कुशल शासन सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती होगी। एक युवा महिला अधिकारी के एक सवाल के जवाब में वोहरा ने राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण को रोकने में विफलता पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब तक यह समाप्त नहीं होगा, लोगों का व्यवस्था में विश्वास बहाल नहीं हो पाएगा। इस संबंध में मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभाओं और संसद में 43 प्रतिशत से अधिक लोगों के खिलाफ हत्या और कई जघन्य आपराधिक मामले तक दर्ज हैं।
आजादी के बाद के दशकों में देश में आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन का संदर्भ देते हुए वोहरा ने बताया कि आंतरिक सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण तत्व है, जिसमें शासन के लगभग सभी पहलुओं को शामिल करते हुए असंख्य चिंताएं शामिल हैं। पाकिस्तान द्वारा पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अपना छद्म युद्ध शुरू करने के बाद, आंतरिक और बाहरी सुरक्षा चुनौतियों से अलग-अलग निपटना संभव नहीं था, दोनों ही आपस में जुड़े हुए थे। इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत को विकसित करने में सभी सुरक्षा मुद्दों पर समग्र दृष्टिकोण रखना महत्वपूर्ण है। वोहरा ने नागरिक और सशस्त्र पुलिस बलों में अपर्याप्त संख्या पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने उद्धृत किया कि 1 जनवरी, 2020 तक देशभर में इन बलों के कर्मियों की स्वीकृत संख्या 20.19 लाख थी और लगभग छह लाख पद खाली थे। यानी 139 करोड़ की आबादी के लिए करीब 15 लाख कर्मचारी बचे। उन्होंने कहा कि पुलिस पर प्रति व्यक्ति खर्च 2.73 रुपये प्रति दिन है। उन्होंने पुलिस बलों द्वारा सामना की जाने वाली कई और बढ़ती चुनौतियों का भी उल्लेख किया। इन चुनौतियों में बढ़ते अपराध, भ्रष्टाचार, ड्रग्स और नशीले पदार्थों का नेटवर्क, संगठित अपराध और ड्रोन से हथियार गिराने की वारदातें आदि शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि विभिन्न मोर्चों पर चुनौतियों की भीड़ से निपटने के अलावा, पुलिस संगठनों को समानता की संस्कृति भी पैदा करनी होगी। इस मौके पर पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने हिमाचल पुलिस द्वारा की गई पहलों का विवरण दिया। इनमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों और खतरनाक सड़क दुर्घटनाओं को कम करना एवं आपातकाल में पुलिस की मदद आदि शामिल हैं।
पुलिस सुधारों को आगे बढ़ाने में विफलता पर वोहरा ने कहा, ‘यह चूक पूरी तरह से राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण है।’ उन्होंने इस संदर्भ में क्रिमिनल नेक्सस रिपोर्ट (जिसे उन्होंने अक्तूबर, 1993 में केंद्र सरकार को प्रस्तुत किया था) को याद किया, जिसमें बेईमान लोक सेवकों, राजनीतिक नेताओं के हाथ मिलाने के खतरे को सामने लाया गया था। उन्होंने कहा कि अनेक कामों से निपटने वाली पुलिस को समाज से वाहवाही नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को पुलिस के सामने आने वाली कई बाधाओं से निपटने के लिए तत्काल ध्यान देना चाहिए। इसमें एक बाधा अपर्याप्त बजट भी है। उन्होंने कहा कि 85 फीसदी वेतन में चला जाता है। प्रशिक्षण, हथियार, उपकरण और परिवहन आदि आवश्यकताओं के लिए बहुत कम धन बचता है। उन्होंने पुलिसकर्मियों के लिए आवास सुविधा को भी जरूरी बताया।
सुरक्षा मसौदे पर बने पेशेवरों का काडर
वोहरा ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के संदर्भ में राज्यों के साथ तत्काल विचार-विमर्श करने के लिए केंद्रीय स्तर पर राजनीतिक कार्यकारिणी की आवश्यकता को रेखांकित किया, जो राज्य और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों, पुलिस संगठनों के बीच प्रभावी समन्वय बनाये। उन्होंने जोर देकर कहा कि राज्यों के साथ परामर्श के लिए उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों का एक अखिल भारतीय काडर स्थापित करने की आवश्यकता पर तत्काल विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस काडर में नागरिक पुलिस, रक्षा सेवाओं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, बैंकिंग और अन्य सेवाओं से विशेष प्रशिक्षण प्राप्त अधिकारियों को लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा पर निगरानी रखने के लिए विभिन्न विशिष्ट क्षेत्रों में प्रशिक्षित कर्मियों के कई
उप-संवर्गों की आवश्यकता होती है।