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न्याय व्यवस्था के सामने अनोखी चुनौतियों : सीजेआई

छात्रों से कहा- विदेशी डिग्री आपकी योग्यता पर मुहर नहीं
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हैदराबाद, 12 जुलाई (एजेंसी)

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भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने शनिवार को कहा कि हमारा देश और न्याय व्यवस्था अनोखी चुनौतियों का सामना कर रही है। मुकदमों में देरी कभी-कभी दशकों तक चल सकती है। हमने ऐसे मामले देखे हैं, जहां विचाराधीन कैदी के रूप में कई वर्ष जेल में बिताने के बाद भी कोई व्यक्ति निर्दोष पाया गया है।

नालसार विधि विश्वविद्यालय, हैदराबाद में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई ने अमेरिका के एक न्यायाधीश जेड एस. राकॉफ की एक पुस्तक में की गयी टिप्पणी काे उद्धृत करते हुए कहा, ‘हालांकि, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हमारी न्याय व्यवस्था में सुधार की सख्त जरूरत है, फिर भी मैं पूरी तरह से आशावादी हूं कि मेरे साथी (नागरिक) इस चुनौती का सामना करेंगे।’ उन्होंने कहा कि हमारी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं हमें उन समस्याओं का समाधान करने में मदद कर सकती हैं जिनका हम सामना कर रहे हैं।

विदेश में मास्टर डिग्री हासिल करने के दबाव पर सीजेआई गवई ने छात्रों से कहा, ‘सिर्फ एक विदेशी डिग्री आपकी योग्यता पर मुहर नहीं है। यह फैसला बिना सोचे-समझे या अपने साथियों के दबाव में न लें। इसके बाद क्या होगा? बरसों का कर्ज, चिंता, आर्थिक बोझ तले करियर के फैसले।’ उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे छात्रवृत्ति पर विदेश जाकर अध्ययन करें और परिवार पर वित्तीय बोझ न डालें। उन्होंने कुछ युवा स्नातकों या वकीलों का उदाहरण दिया, जो विदेश में शिक्षा के लिए 50-70 लाख रुपये तक का ऋण लेते हैं। वास्तव में, 50-70 लाख रुपये जैसी बड़ी राशि का एक छोटा-सा हिस्सा स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू करने या कार्यालय कक्ष बनाने के लिए निवेश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि युवा वकील जीवन के बाद के चरण में, जब वे स्थिर हो जाएं तो पढ़ाई के लिए विदेश जा सकते हैं।

कानूनी पेशेवरों के समक्ष आने वाले मानसिक दबाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि काम के घंटे लंबे होते हैं, अपेक्षाएं अधिक होती हैं और संस्कृति कभी-कभी ‘निर्मम’ होती है। भारत की कानूनी विरासत का सिर्फ जश्न मनाना ही काफी नहीं है; इसके भविष्य का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि शोधकर्ताओं, युवा शिक्षकों, वकीलों और विद्वानों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है।

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