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Indian Tourist Destination : गुरु तेग बहादुर के बलिदान से जुड़ा गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का इतिहास, यहीं PM मोदी ने टेका था मत्था

Indian Tourist Destination : गुरु तेग बहादुर के बलिदान से जुड़ा गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का इतिहास, यहीं PM मोदी ने टेका था मत्था
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चंडीगढ़, 19 मार्च (ट्रिन्यू)

Indian Tourist Destination : गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब दिल्ली के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है। यह गुरुद्वारा ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह दिल्ली के केंद्रीय हिस्से में, संसद भवन और राष्ट्रपति भवन के नजदीक स्थित है। रकाबगंज साहिब वह स्थान है, जहां सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था।

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बता दें कि हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और न्यूजीलैंड के उनके समकक्ष क्रिस्टोफर लक्सन ने राष्ट्रीय राजधानी स्थित गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब पहुंचकर मत्था टेका था। लक्सन रविवार को भारत की पांच दिवसीय यात्रा पर आए थे। इसी दौरान मोदी व लक्सन ने शाम को गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब का दौरा भी किया। पीले रंग का पटका पहने दोनों नेताओं ने गुरु ग्रंथ साहिब के सामने मत्था टेका था। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स' पर गुरुद्वारे की तस्वीरें भी साझा कीं है।

जानिए क्या है रकाबगंज गुरुद्वारे का इतिहास

गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब नई दिल्ली में संसद भवन के पास एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा है, जिसका निर्माण 1783 में तब किया गया था जब सिख सैन्य नेता बघेल सिंह ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने दिल्ली में कई सिख धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया था। यह 9वें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के दाह संस्कार का स्थल है, जो नवंबर 1675 में इस्लामी मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर कश्मीरी हिंदू पंडितों की मदद करने के लिए शहीद हुए थे। गुरुद्वारा साहिब को बनने में 12 साल लगे थे।

मुगल बादशाह औरंगजेब ने करवाई थी हत्या

मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर जी को चांदनी चौक में सिर काटकर शहीद कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने से इनकार कर दिया था। इसके बाद लखी शाह बंजारा और उनके बेटे भाई नघैया ने उनके सिर रहित पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए अपने घर को ही जला दिया।

यहीं हुआ था श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का अंतिम संस्‍कार

1707 में जब गुरु गोबिंद सिंह दसवें सिख गुरु राजकुमार मुजम्मद से मिलने दिल्ली आए तो उन्होंने स्थानीय सिखों की मदद से दाह संस्कार स्थल का पता लगाकर एक साधारण स्मारक बनाया। बाद में उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे सरदार बघेल सिंह ने 1783 में तोड़कर गुरुद्वारा बनवाया। इसके बाद सिखों और मुसलमानों में विवाद छिड़ गया। मगर, सिखों द्वारा किए गए विरोध और आंदोलन के बाद सरकार झुक गई दोबारा गुरुद्वारे की चारदीवारी का काम करवाया।

आनंदपुर साहिब में हुआ था कटे हुए सिर का संस्कार

गौरतलब है कि जिस स्थान पर गुरु साहिब का सिर काटा गया था, वह गुरुद्वारा सीस गंज साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु साहिब के कटे हुए सिर को भाई जैता जी द्वारा दिल्ली से पंजाब के आनंदपुर साहिब लाया गया था और उनके बेटे गुरु गोबिंद राय ने उनका अंतिम संस्कार किया था, जो बाद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह बने।

बता दें कि गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का भी घर है। संसद भवन के नजदीक होने की वजह से यह गुरुद्वारा हाई सिक्योरिटी जोन में रहता है, जहा सिखों किसी भी शुभ काम से पहले माथा जरूर टेकते हैं।

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