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India-Pak Tension : सिंधु नदी जिसका भारत ने रोका पानी, बहुत पुराना और दिलचस्प है इसका इतिहास

सिंधु नदी: सभ्यताओं की जननी से जल राजनैतिक हथियार तक
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चंडीगढ़, 8 मई (ट्रिन्यू)

India-Pak Tension : सिंधु नदी, जिसे अंग्रेजी में "Indus River" कहा जाता है, न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे महत्वपूर्ण और प्राचीन नदियों में से एक है। इसका इतिहास बेहद पुराना, सांस्कृतिक, राजनीतिक और भौगोलिक महत्व रखता है।

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यह नदी वर्तमान में पाकिस्तान, भारत और चीन के क्षेत्रों से होकर बहती है। इसका जिक्र वेदों से लेकर आधुनिक राजनीतिक संधियों तक मिलता है। हाल ही में जब भारत सरकार ने सिंधु जल संधि के अंतर्गत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए कुछ पानी को रोकने की बात की, तो यह एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया।

मानसरोवर झील से होकर निकलती है सिंधु नदी

सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत (वर्तमान चीन) में मानसरोवर झील के पास होता है। यह लद्दाख के क्षेत्र से होकर पाक की ओर जाती है, जहां पंजाब और सिंध प्रांतों से होते हुए अरब सागर में मिलती है। इसकी लंबाई लगभग 3,180 किमी है। यह गंगा के बाद भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी मानी जाती है। इसकी सहायक नदियां- झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज हैं।

सिंधु नदी का ऐतिहासिक महत्व

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे नगर इसी नदी के किनारे बसे थे। इस सभ्यता के लोग कृषि, व्यापार और नगरीय जीवन में अत्यधिक उन्नत थे। यही वह नदी थी, जिसने भारतीय संस्कृति को "सिंधु" शब्द से जोड़ा। 'हिंद' शब्द भी 'सिंधु' से ही निकला है- जब फारसियों ने 'स' को 'ह' से उच्चारित किया, तो 'सिंधु' बना 'हिंदु', और यही आगे चलकर 'हिंदुस्तान' और 'इंडिया' में बदला।

भारत-पाकिस्तान और सिंधु जल संधि

भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि के अंतर्गत भारत को तीन पूर्वी नदियां- रावी, ब्यास और सतलुज का पूरा पानी इस्तेमाल करने का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियां - सिंधु, झेलम और चिनाब दी गईं। हालांकि, भारत को पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग (जैसे कृषि, घरेलू और जलविद्युत उत्पादन के लिए) करने का अधिकार प्राप्त है।

यह संधि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफल मानी जाती है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध होने के बावजूद यह संधि अब तक लागू रही है लेकिन हाल ही में पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत ने इस नदी के पानी को रोकने का फैसला किया।

भारत द्वारा पानी रोकने का निर्णय

भारत ने सिंधु जल संधि के अंतर्गत पूर्वी नदियों के पानी का उपयोग पूरी तरह करने का संकल्प लिया। इसका अर्थ यह नहीं कि भारत पाकिस्तान के हिस्से का पानी रोक रहा है, बल्कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में मिलने वाले पानी का अब अधिकतम उपयोग करना चाहता है- जैसे बांध, नहर और जलविद्युत परियोजनाओं के माध्यम से। उदाहरण के लिए, रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध परियोजना, और ब्यास-सतलुज लिंक को पूरा करने की दिशा में तेजी आई है।

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