Glaucoma दृष्टि का 'मूक चोर': समय पर जांच न कराई तो 'ग्लूकोमा' ले सकता है आंखों की रोशनी
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 13 मई
Glaucoma ग्लूकोमा आंखों की एक गंभीर बीमारी है, जो धीरे-धीरे ऑप्टिक नर्व को क्षति पहुंचाती है। यह नस आंख और मस्तिष्क को जोड़ती है, और इसके प्रभावित होने पर देखने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। बिना किसी लक्षण के दृष्टि को छीन लेने के कारण इसे 'साइलेंट थीफ ऑफ विजन' यानी दृष्टि का 'मूक चोर' कहा जाता है।
कंसल्टेंट नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं ग्लूकोमा स्पेशलिस्ट एवं पीजीआई के पूर्व सीनियर रेजिडेंट डॉ. रेनू साहनी बताती हैं, "ग्लूकोमा ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति की नजर को चुपचाप खत्म कर देती है। मरीज को तब तक कुछ पता नहीं चलता, जब तक उसकी दृष्टि का बड़ा हिस्सा जा नहीं चुका होता, और दुर्भाग्यवश वह वापस नहीं आता।"
देश में 1.2 करोड़ लोग ग्रसित
भारत में करीब 1.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं, और यह अंधत्व के प्रमुख कारणों में से एक है।
डॉ. साहनी कहती हैं, "40 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लगभग 3 से 4 प्रतिशत लोगों को ग्लूकोमा होने की संभावना रहती है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इनमें से लगभग 90 प्रतिशत को इसकी जानकारी ही नहीं होती।"
ग्लूकोमा के प्रकार और लक्षण
ओपन एंगल ग्लूकोमा : यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें शुरुआती चरणों में कोई लक्षण नहीं दिखते। मरीज को धीरे-धीरे परिधीय दृष्टि (साइड विजन) का नुकसान होता है।
एंगल क्लोजर ग्लूकोमा : इसमें अचानक सिरदर्द, आंखों में तेज दर्द, मतली, उल्टी और धुंधली दृष्टि जैसे लक्षण सामने आते हैं।
कंजेनिटल ग्लूकोमा : यह बच्चों में होता है और आमतौर पर वंशानुगत होता है।
डॉ. साहनी बताती हैं, "ओपन एंगल ग्लूकोमा इसलिए खतरनाक होता है क्योंकि मरीज को इसकी भनक तक नहीं लगती। लेकिन आंखों के दबाव की नियमित जांच से इसे समय रहते पकड़ा जा सकता है।"
कौन हैं जोखिम में?
- 40 वर्ष या उससे अधिक उम्र के व्यक्ति
- जिनके परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास हो
- उच्च मायोपिया या हायपरमेट्रोपिया वाले लोग
- डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर के मरीज
- आंख की चोट या सर्जरी का इतिहास
- जो लंबे समय तक स्टेरॉइड दवाओं का सेवन कर रहे हों
समय पर जांच क्यों जरूरी?
ग्लूकोमा का समय पर पता चल जाए तो इलाज संभव है और दृष्टि को बचाया जा सकता है।
डॉ. साहनी कहती हैं, "ग्लूकोमा की जांच पूरी तरह दर्द रहित होती है और कुछ मिनटों में की जा सकती है। 40 वर्ष की उम्र के बाद साल में एक बार नेत्र जांच जरूर करवानी चाहिए।"
जांच में निम्नलिखित शामिल होती हैं:
- आंखों के दबाव (IOP) की माप
- ऑप्टिक नस की जांच
- गोनियोस्कोपी (आंख के कोण का मूल्यांकन)
- फंडस फोटो
- ओसीटी (OCT)
- विजुअल फील्ड टेस्ट
इलाज और बचाव
ग्लूकोमा का इलाज उसकी गंभीरता के अनुसार किया जाता है। इसमें आंखों में डाले जाने वाले ड्रॉप्स, लेजर थैरेपी या सर्जरी शामिल हो सकती है।
डॉ. साहनी का सुझाव है, "इलाज से बेहतर है बचाव। 40 की उम्र के बाद हर व्यक्ति को सालाना नेत्र जांच जरूर करानी चाहिए, ताकि ग्लूकोमा जैसी 'साइलेंट' बीमारी से समय रहते बचा जा सके।"