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Election : चुनाव नियमों में संशोधन धरे रह गये हाईकोर्ट के ई-दस्तावेज दिखाने के निर्देश

हरियाणा विधानसभा चुनाव संबंधी रिकॉर्ड को सार्वजनिक करने की डाली गयी थी याचिका
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नयी दिल्ली, 21 दिसंबर (एजेंसी)

केंद्र सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए सीसीटीवी कैमरा, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण पर रोक लगा दी है। केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर ‘चुनाव संचालन नियम, 1961’ के नियम 93 में संशोधन किया है। कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों का दुरुपयोग रोकने के लिए यह कदम उठाया गया है।

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विधि मंत्रालय और चुनाव आयोग के अधिकारियों ने अलग-अलग बताया कि संशोधन के पीछे एक अदालती मामला था। यद्यपि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का उल्लेख चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, लेकिन आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज इसके दायरे में नहीं आते हैं। आयोग के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां नियमों का हवाला देते हुए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड मांगे गए हैं। संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि केवल नियमों में उल्लेखित कागजात ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध होंगे।’ आयोग के अधिकारियों ने कहा कि मतदान केंद्रों के अंदर सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के दुरुपयोग से मतदान की गोपनीयता प्रभावित हो सकती है। इस फुटेज का इस्तेमाल एआई का उपयोग करके फर्जी विमर्श गढ़ने के लिए किया जा सकता है।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल में चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव से संबंधित आवश्यक दस्तावेजों की प्रतियां वकील महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। प्राचा ने चुनाव संचालन से संबंधित वीडियोग्राफी, सीसीटीवी कैमरा फुटेज और फॉर्म 17-सी की प्रतियों की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।

पारदर्शिता से डरता क्यों है चुनाव आयोग : कांग्रेस

कांग्रेस ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि इसे चुनौती दी जाएगी। पार्टी महासचिव जयराम रमेश (Jairam ramesh) ने सवाल किया कि चुनाव आयोग पारदर्शिता से इतना डरता क्यों है? रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘चुनावी प्रक्रिया में कम होती सत्यनिष्ठा से संबंधित हमारे दावों का जो सबसे स्पष्ट प्रमाण सामने आया है, वह यही है।... चुनाव आयोग अदालती फैसले का अनुपालन करने के बजाय, कानून में संशोधन करने में जल्दबाजी की है।’

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