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निगरानी व्यवस्था को चकमा, कश्मीर में घुसपैठ ही बड़ा खतरा

श्रीनगर/नयी दिल्ली, 27 अक्तूबर (एजेंसी) जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले के गगनगीर में 20 अक्तूबर को हुए आतंकवादी हमले की जांच के दौरान खुफिया जानकारी की कमी और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पिछले एक साल से निगरानी व्यवस्था को चकमा देकर...
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श्रीनगर/नयी दिल्ली, 27 अक्तूबर (एजेंसी)

जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले के गगनगीर में 20 अक्तूबर को हुए आतंकवादी हमले की जांच के दौरान खुफिया जानकारी की कमी और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर पिछले एक साल से निगरानी व्यवस्था को चकमा देकर घुसपैठ होने की जानकारी सामने आई है। गगनगीर में हुए हमले में एक स्थानीय डॉक्टर और बिहार के दो मजदूरों सहित सात लोगों की जान चली गई थी। जेड-मोड़ सुरंग निर्माण स्थल पर हुए इस हमले में दो आतंकवादी शामिल थे। इनमें से एक की पहचान दक्षिण कश्मीर के कुलगाम के स्थानीय युवक के रूप में हुई है, जो 2023 में एक आतंकवादी समूह में शामिल हो गया था, जबकि दूसरे के बारे में माना जाता है कि वह पाकिस्तान से आया था।

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सुरक्षा अधिकारियों ने स्थानीय युवकों के तेजी से कट्टरपंथी बनने पर चिंता व्यक्त की और ऐसे युवकों की पहचान के लिए उन्नत मुखबिर नेटवर्क की आवश्यकता पर बल दिया। जम्मू-कश्मीर पुलिस और भारतीय सेना की चिनार कोर के नेतृत्व में हाल के बदलावों के मद्देनजर तमाम चीजों पर नये सिरे से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। पिछले दिनों हुए हमले में स्थानीय हमलावर के पास एके राइफल थी, जबकि उसके साथी के पास अमेरिकी एम-4 राइफल थी। अधिकारियों ने संकेत दिया कि स्थानीय आतंकवादी ने संभवत: अपने समूह के साथ मिलकर दूसरे हमलावर की घुसपैठ को सुगम बनाया, जो शायद इस वर्ष मार्च में तुलैल सेक्टर से नियंत्रण रेखा पार कर आया था। पिछले वर्ष दिसंबर से ही उत्तरी कश्मीर के तुलैल, गुरेज, माछिल और गुलमर्ग सहित विभिन्न क्षेत्रों से घुसपैठ के प्रयासों की खुफिया रिपोर्ट मिल रही हैं, लेकिन सेना पुष्टि के अभाव में इनसे इनकार करती रही है।

छिपा हुआ खतरा भी बड़ी चुनौती

जांच एजेंसियों के लिए ‘छिपा हुआ खतरा’ भी बड़ी चुनौती है। घुसपैठिये स्थानीय आबादी के बीच तब तक छिपे रहते हैं, जब तक उन्हें पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से आदेश नहीं मिल जाता। अधिकारियों का मानना ​​है कि केंद्र-शासित प्रदेश में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कड़े सुरक्षा उपाय और अंतर्राष्ट्रीय जांच में वृद्धि के कारण ये समूह कम सक्रिय रहे हैं।

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